Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 74
________________ अविभक्ताश्च सर्वार्थाः VII. 23.130 | अवेक्ष्य सहसा रामः II. 45.17c अविमृश्य न रोषस्य IV. 35.IIC अवेक्ष्य सौमित्रिमरोगमुत्थितम् VI. 91.28c अविलम्बितमव्यथम् IV. 3.31b अवेक्ष्य सौमित्रिमुदग्रविक्रमः III. 69.51c अविषह्यं जघान त्वाम् VI. III.6c अवेक्ष्य हनुमाँल्लङ्काम् V. 55.IC अविषह्यतमं दुःखम् II. I06.7c अवेक्ष्य हरियूथपम् V. 40.20d अविषह्यं महाबलम् III. 28.2b अवेक्ष्याअलिपानांश्च II. 68.18a अविषह्यातपो यावत् III. 8.8a अवेक्ष्याथ समागतम् II. 57.18b अविषादं च संयुगे VII. 36.16d अवेक्ष्यातः स सारथिः II. 52.15b अविष्टासि गृहे शून्ये II. I2.18c अवेक्ष्यावेक्ष्य धावन्तम् III. 44.5a अविस्तरमसंदिग्धम् IV. 3.31a अवेक्ष्यैवं परावृत्तः VII. 35.4Ic अवीर्या वीर्यसंदिग्धाः I. 66.25a अवेहि मामद्य निशाचरेन्द्र VI. 59.92c अवृक्षं कामशैलं च IV. 43.28a अवेहि मां राक्षस वंशनाशनम् VI. 67.143c अवृक्षेषु च देशेषु II. 80.7a अवक्षत हरीन्सर्वान् VI. I28.8oa अवेक्षतां भवान्कोशम् VI. 127.56a अवैक्षताक्षं बहुमानचक्षुषा V. 47.24c अवेक्षते कामरतिर्मनुष्यः IV. 33.55d अवैक्षताक्षः समुदीर्णमानसम् V. 47.IIC अवेक्षन्तौ वने सीताम् III. 69.Ic अवेक्षतां तु तो तत्र III. 69.13c अवेक्षमाणः को धर्मम् II. 21.6c अवोचद्यदि तत्तथ्यम् V. 27.47c अवेक्षमाणः पुरराजमार्गम् VI. 67.84c ,, , , 58.92a अवेक्षमाणश्च ददर्श सर्वम् V. 14.52c अव्यक्तप्रभवो ब्रह्मा I. 70.19c अवेक्षमाणश्च महीम् V. 15.IC [अ]व्यक्तमार्ततराः स्त्रियः II. 59.13d अवेक्षमाणश्चारेण I.7.21a अव्यक्तरेखामिव चन्द्रलेखाम् V. 5.26a अवेक्षमाणस्तां देवीम् V. 30.2a अव्यक्तेनासता सता VI. 83.24b अवेक्षमाणस्तु तदा V. 18.26a अव्यग्रमनसो यूयम् V. 62.1c अवेक्षमाणः सस्नेहम् II. 45.5a अव्यग्रस्तदवाप्नोति IV. 21.2c अवेक्षमाणां बहुशः III. 52.43a अव्यग्रहृदयेक्षणम् VI. I06.12b अवेक्षमाणा वैदेही VI. 128.79a. अव्यग्राश्च प्रहृष्टाश्च VI. 18.14a अवेक्षमाणो बहुशः स मैथिलीम् III. 45.40c अव्यवस्था भवत्युग्रा VI. 49.33a अवेक्षमाणो वैदेहीम् V. 22.30a अव्याहरन्क्वचित्किचित् VII. I09.5a अवेक्षमाणो हनुमान् V. I0.IC अव्रतो ना बहुश्रुतः I. 14.21b , , ,, II.46c अशक्तमभिशंससि II. 23.7d अवेक्षस्व जगन्नृप II. II0.35d अशक्तश्चापरिक्रमः II. 63.42d अवेक्षितमिदं मया V. 30.4d अशक्ता धारणे देव I. 37.15c अवेक्ष्य रथमागतम् II. 59.12b अशक्ताः प्रत्यनीकेषु V. 20.20c अवेक्ष्य वरवर्णिनी V. 67.32d अशक्तास्तस्य तोलने II. II8.43d अवश्य विनिवृत्ता सा VI. 47.10c अशक्तेन त्वया रक्षः V. 21.29c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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