Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 80
________________ असुरैर्वा सुरैर्वा त्वम् III. 56.8a | अस्तं गत इवांशुमान् I. 34.22d असुरो जातसंत्रासः IV. 9.9c अस्तं गते सहस्रांशौ VI. 89.36a असुरो न्यपतद्भूमौ IV. 48.21a अस्तं च गिरिसत्तमम् IV. 46.1gb असुद्धिर्ममामित्रैः IV. 32.4a अस्तं दिनकरे याते V. 58.47c मसूत विश्रवसं सुतम् VII. 2.32d अस्तमर्के गते वासम् VII. 51.29c मसूतास्ते हयास्तत्र VI. 90.28c अस्तमभ्यागमत्सूर्यः II. I3.15a मसूर्तरजसं वसुम् I. 32.3b अस्तमस्तकसंनद्ध IV. 23.19a असूर्तरजसो नाम I. 32.7a अस्तं पर्वतमासाद्य IV. 42.52c भसक्क्षरन्ति धाराभिः VII. 7.15c अस्तं प्राप्ते दिनकरे VII. 26.1c असक्चन्दनदिग्धाङ्गम् VII. 69.Iga अस्तं प्राप्नोति सविता III. 29.23c असक्सुलुवतुस्तीरम् VI. 45.21c अस्तार्कसमवर्णं च IV. 25.42c असन्दिग्धतनूरुहः V. 46.36b अस्ति कञ्चित्त्वया दृष्टा III. 60.12a असृग्दिग्धा विनिष्पतुः VI. 88.68c अस्ति मन्ये विपर्ययः V. 36.14d असृजच जगत्सर्वम् II. II0.4c अस्ति मूलफलं चैतत् II. 84.17a असृजत्पद्मसंभव: VII. 4.d अस्ति सूक्ष्मतरं किंचित् VI. I8.ga असृजद्भगवान्पक्षौ VI. 35.12a अस्तुवन्पार्थिवर्षभम् I. 12.21b असृजयुद्धविष्ठितः VI. 90.55d अस्त्रं गास्त्मतं घोरम् VI. I02.24c असृजन्क्रोधमूछितः I. 60.2nd अस्त्रं च बलवद्राजन् VII. 25.12c भसेव्यः सर्वतश्चैव III. 64.34a अत्रं तु परमं घोरम् VI. I02.20a असौ किरीटी चलकुण्डलास्यः VI. 59.25a अस्त्रं नारायणं तथा I. 27.10b असौ च जीमूतनिकाशरूपः VI. 59.20a अस्त्रं निवारितं दृष्ट्वा VI. 90.57c असौ तिलकमञ्जरीम् IV. 1.58b अस्त्रपाशैन शक्योऽहम् V. 50.16c असौ पुनर्लक्ष्मण राक्षसेन्द्र VI. 73.64a अस्त्रबन्धः स चान्यं हि V. 48.48c असौ पुनर्व्याकरणं अहिष्यन् VII. 36.44a अस्त्रमायामसंभवम् II. 40.35b असौम्याः पक्षिणो घोराः I. 74.IOC अस्त्रमाहारयामास VI. 59.80c असौ रणान्तः स्थितिसंधियाल: III. 37.47a. { अस्त्रमैन्द्रण वीर्यवान् VI. 71.8gd असौ रामस्तु सीदन्तीम् III. 31.24c | अस्त्रं परमभास्वरम् I. 30.17b असो विनिर्दहेदग्निम् V. 55.28c , , III. 25.37b असौ समासाद्य रणाग्यलक्ष्मीम् VI. 73.68d | अस्त्रं पैतामहं प्रभो VI. I08.2b असौ सुकृष्णो विहग: II. 52.2c अस्त्रं ब्रह्मविनिर्मितम् III. 44.15b असौ सुतनु शैलेन्द्रः VI. 123.49c अस्त्रं ब्रह्मशिरः प्राप्तम् VI. 85.12c असौ हि राक्षसः शेते III. 59.25a अस्त्रं ब्रह्मशिरश्चैव I. 27.6c अस्तं गच्छति पर्वतम् IV. 42.42d ,, , VI. 48.16c " , , , 42.50d अनयोग्यान्तरेष्वपि II. I.12d अस्तं गच्छति यत्रार्कः IV. 37.21a | अस्त्रं वारुणमाददे VI. 90.55b. १. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org


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