Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 60
________________ अमर्यश्च भविष्यथ I. 32.17d समर्षजनितोद्धर्षाः VI. 52.6c अमर्षप्रभवो रोषः V. 62.33c अमर्षमतुलं लेभे VII. 9.44c अमर्षमाणस्तत्कर्म VI. 90.30c अमर्ष पृष्ठतः कृत्वा VII. 43.16c अमर्षवशमापनः VI. 41.82c __" , 90.29c , II6.20c अमर्षस्फुरितोष्ठः सन् III. 51.36c अमर्षाच्छोणितोद्गारी VI. 67.90c अमर्षात्परिवृत्ताक्षः VI. 36.2c अमर्षात्पृष्ठतः कृत्वा VII. 47.13b अमरिप्रदहन्निव VI. I07.14b अमर्षादरगामिनाम् III. 64.66b अमर्षी कुपितो रामः III. 27.IIC अमर्षी दुर्जयो जेता III. 34.14a , , , VI. 28.24a अमषी वचनं श्रुत्वा V. 62.30c अमात्यपुत्रानतिवीर्यविक्रमान् V. 44.20c अमात्यपुत्रा वीराश्च V. 48.7c अमात्यप्रभृतीः सर्वाः II. 3.44a अमात्यमध्ये संक्रुद्धः III. 34.IC अमात्यमध्ये संक्रुद्धा III. 33.Ic अमात्यमुख्यांश्च ददर्श वल्लभान् II. 15.47b अमात्यः शीलवाञ्छुचिः VI. 92.58b अमात्याः क्षिप्रमाख्यात VII. 32.26c अमात्यानब्रवीद्राजा I. 8.14a ,, ,, I2.14C अमात्यानिह संमतान् VII. 25.26d अमात्यानुपधातीतान् II. I00.26a अमात्यान्गणवल्लभान् II. 8I.I2b अमात्या बलमुख्याश्च II. 15.2a अमात्या राक्षसेन्द्रस्य VII. 21.31a अमात्याश्च गुणोपेताः VI. II.25c अमात्यास्ते नृपस्य तु VII. 32.32b अमात्यास्त्वरयन्ति स्म II. 77.26c अमात्यांस्तांस्तु संत्यज्य VII. 21.32c अमात्यैः कामवृत्तो हि III. 41.7a अमात्यैरागतैनीतः VII. 34.44c अमात्यैाह्मणैश्चैव VI. 128.36a अमात्यैश्च महावीर्यैः VII. 23.31a अमात्यैश्च सुहृद्भिश्च II. II2.17a ,, , VI. II.2e अमात्यैः शास्त्रकोविदैः II. I00.16d अमात्यैः सह पौरैश्च II. 98.5a अमात्यैः सहितः सर्वैः VI. 32.36a अमात्यो रावणः श्रीमान् VI. 25.IC अमानुषाणि सत्वानि VII. 4I.I8a. अमार्गेणागतां लक्ष्मीम् III. 8.8c अमितबलपराक्रमा भवन्तः IV. 41.49a अमितस्य तु दातारम् II. 39.30c अमित्रबलवर्धनः II. 93.24d अमित्रभूतो निःसङ्गम् II. 21.12c अमित्रमथनार्थाय II. 23.31a अमित्रविषयं प्राप्ताः VI. 37.3c अमित्राणां भयकरः VII.:36.22a अमित्राणां वधे युक्तः IV. 38.22c अमित्रान्पवनात्मजम् VI. 86.25d अमित्रान्मन्त्रनिर्णये VI. 63.18b अमित्रास्तत्कुलीनाश्च VI. 18.10a. अमी पवनविक्षिप्ताः IV. I.18a अमी मधुकरोत्तंसाः IV. 1.20c अमी मयूराः शोभन्ते IV. 1.36c अमी रुधिरधारास्तु III. 24.4a. अमी लक्ष्मण दृश्यन्ते IV. I.6oa अमी संसक्तशाखाग्राः IV. I.I6c अमी हि विविधैः पुष्पैः IV. I.97a अमुञ्चं निशितं बाणम् II. 63.24a. अमुत्रापि महाबल: III. 49.35b Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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