Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 67
________________ अर्चयिष्यति माल्यैश्च VI. 26.7a अर्चितं विविधैर्गन्धैः I. 3I.I3c . अर्चितश्च यथान्यायम् VI. 18.240 अर्चितस्तापसः सर्वैः II. II9.16c अर्चितस्तैर्यथान्यायम् VII. 23.15a अर्चितः सर्वकामैस्त्वम् VI. I2I.I3c अचिंतं सततं यत्नात् VI. 32.17a अचितं सर्वलोकस्य IV. 19.24a अर्चिताश्चैव हृष्टाश्च II. 50.40e अर्चितो विविधैः कामैः II. 84.18c अर्चितोऽहं त्वया भद्रे III. 74.31c अचिभिभूषणानां च V. 9.32c अर्चिभिश्चापि रत्नानाम् V. 6.40a अचिर्माल्यान्महाबलान् IV. 42.4d अर्चिष्मतः कालनिकाशरूपान् VI. 15.13b अर्चिष्मद्भिर्वृतो भाति VI. 7I.I3c अर्चिष्मन्तः प्रकाशन्ते VI. 4.48e भर्चिष्मन्तं महाकपिम् IV. 42.3b अर्चिष्मन्तं श्रिया जुष्टम् III. 5.13a अर्चिष्मानर्चितोऽत्यर्थम् V. 35.12a अर्चिष्मान्स महामणिः VI. 126.46d अचिःसहस्त्रविकच: VI. 76.89a गर्नुनं नृपसत्तमम् VII. 32.49d अर्जुनस्य गदा सा तु VII. 32.56a अर्जुनस्यानुयात्राणाम् VII. 32.33c अर्जुनाभिमुखे तस्मिन् VII. 32.21a अर्जुनाय तु तत्कर्म VII. 32.37a अर्जुनाय न्यवेदयन् VII. 33.5d अर्जुनेन विमुक्तस्तु VII. 34.1a अर्जुनेनोपयास्यसि VII. 32.31d अर्जुनो जयतां श्रेष्ठः VII. 32.2a अर्जुनो दृश्य संभ्रान्तः VII. 33.8c अर्जुनो नर्मदा रन्तुम् VII. 31.9c अर्जुनो नाम यत्राग्निः VII. 31.8c अर्जुनोरसि निर्भाति VII. 32.57c अर्जुनो विदधे मृत्युम् I. 75.24a अर्णवस्य प्रशुश्रुवे VI. 4.106d अर्थकामकरं मम II. 16.18d अर्थकामौ च केवलौ II. 86.6d अर्थकामौ च पुष्कलौ II. 51.5d अर्थग्राहकमब्रवीत् II. 54.27d अर्थधर्मपरा ये ये II. I08.13d अर्थधर्मों च संगृह्य II. I.27c अर्थधर्मी परित्यज्य II. 53.13a अर्थ धर्मेण वा पुनः II. I00.62b अर्थमर्थपरो यथा VI. 34.23d अर्थलोपश्च मित्रस्य IV. 33.47c अर्थवन्मधुरं लघु VI. I7.50d अर्थ वा यदि वा कायम् III. 50.9a अर्थ विरागाः पश्यन्ति II. I00.58c अर्थशास्त्र विशारदम् II. I00.14b अर्थशास्त्रानभिज्ञानात् VI. 63.15c अर्थसंहितया वाचा IV. 17.15c अर्थसाधकमब्रवीत् VI. 86.1d अर्थसाधकमात्मनः VI. 90.69b अर्थसिद्धिं तु वैदेह्या: V. 27.42a अर्थसिद्धौ हरिश्रेष्ठ V. 58.33a अर्थसिद्धयै हरिश्रेष्ठ V. I. 16oa अर्थसूक्ष्म विनिश्चये IV. 22.13b अर्थस्यासंभवात्तत्र VI. 17.55c अर्थस्येते परित्यागे VI. 83.37a अर्थ सर्वात्मनः श्रितः III. 16.32d अर्थहीनमनुव्रते V. 22.31b अर्थादेतानि सर्वाणि VI. 83.39c अर्थानर्थनिमित्तं हि VI. 17.53a अर्थानान्तरे बुद्धिः V. 2.38a ,, , ,, 30.38a. अर्थानौँ विनिश्चित्य VI. 17.41a अर्थितो मानुषे लोके II. I.7c | अर्थितो स्वस्मि कैकेय्या II. 34.50a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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