Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 68
________________ अर्थित्वामाथ वक्ष्यामः III. 6.10c अर्थिनः कार्यनिवृत्तिम् IV. 43.7a अधिना कार्यसिद्धयर्थम् VII. 53.18a अर्थिनामुपपन्नानाम् IV. 30.71a अर्थिनां वितथा कुर्यात् II. 75.50c अर्थी नान्येन केनचित् II. 50.45b अर्थी येनार्थकृत्येन III. 43.34a अर्थेन हि विमुक्तस्य VI. 83.33a अर्ये वाद्य ते भर्ता II. 7.25c अर्थेभ्योऽथ प्रश्रद्धेभ्यः VI. 83.32a अर्थोपहितया वाचा III. 31.37c , , , 35.40c ,, VI. I28.43c अर्थो यो न: पुरा दृष्टम् VII. 7I.20c अर्थो हि नष्टकार्याथैः III. I.I20c अयं विज्ञापयमेव VI. 127.25a अर्थ्य विज्ञापयंश्चापि VI. 75.Ic अर्दयन्तोऽस्त्रवर्षेण VII. 7.Ic पर्दयन्तौ तु समरे VI. I07.30a अर्दयनरावणं रामः VI. I07.32c अर्दयामास तद्रक्षः VII. 67.1gc अर्दयामास संक्रुद्धः VI. 58.26c ., , , 73.47a अर्दयामास समरे VI. 89.45c अर्दयित्वा पुरी लङ्काम् V. 42.36a अर्दयित्वा महानादम् III. 25.6c , , , 28.17c अर्दयित्वा महावीरान V. 57.12c अयित्वा शरोघेण VI. I02.28c अदितं मर्मभेदिभिः III. 25.26b अर्दितश्च प्रहारेण VI. 76.3c अर्दिता यूथपाः मत्ताः II. 93.IC ,, , , 96.4c अर्दिता वानरैभ्रष्टाः VI. I08.25a अर्दिताश्चैव बाणोध: VI. 100.42a | अर्दिताः शरजालेन VII. 23.32c अर्दितास्ते द्रुमा रेजु: VI. 76.67a अर्दिताः स्म भृशं राम III. I0.Ila अर्धमानः शरैः सोऽथ VII. 7.33a अर्थमानस्ततस्तेन V. 46.26a अर्धचन्द्रप्रतीकाशा VII. 70.IIa अर्धचन्द्रेण चिच्छेद VI. 71.67c अर्धचन्द्रेण वदने V. 44.7a अर्धचन्द्रेण सारथेः III. 26.8d अर्धचन्द्रैरदारयत् VI. 56.18d अधयोजनमात्रं तु VII. 32.13a अर्धयोजनविस्तीर्णम् V. 9.2a अर्धरात्रे तु शत्रुघ्नः VII. 66.12a अर्धरात्रे दशरथः II. 42.33c , , ,, 63.4c अर्धरात्रे स्थितं बलम् VI. 31.20b . अर्धसंजातसस्येव V. 40.2c अर्धशप्तशतास्तत्र II. 34.13a अर्धस्थितप्राणमितीव मन्ये IV. 24.I9d अर्धस्य देवो वरदः VII. 87.24c अर्धादर्धं ददौ चापि I. 16.27c अर्धाधिकमुहूर्तेन III. 30.30c , ,, 34.I0c अर्धासनेन शक्रस्य VII. 67.8a अर्बुदैरवुदशतैः IV. 38.31a अर्हतो विविधां पूजाम् VII. 39.18c अर्हन्ति कुशला जनाः II. 79.7d अर्हसे च कपिश्रेष्ठ V. 36.10a अर्हस्त्वं कपिराज्यस्य IV. 36.14c अलक्तरसरक्ताभौ II. 60.18a अलक्तरसवर्जितौ II. 60.18b [अ]लक्षणैर्भाग्यदुर्लभाः VI. 48.7b अलक्ष्मीकानि पश्यामि II. 71.39a अलंकतुं दिवाकरः IV. 28.4d अलंकार पुरस्यैवम् II. 6.rga Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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