Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 43
________________ अन्योन्यं सहसा दृप्ताः VI. 4. .28a अन्योन्यैराहताः सक्ताः VI. 4. 118a अन्यो राजात्वमन्यस्तु II. 108. IOC अन्वक्षं लक्ष्मणो भ्रातुः II. 40.3a अन्वगच्छत्समाहितः VI. 38.7b अन्वगच्छदवाङ्मुखी VII. 96.1ob अन्वगच्छद्धनुष्पाणिः III. 47.20a अन्वगच्छन्द्रहृष्टवत् VII. rog. 13d अन्वगच्छन्महात्मानम् VII. 109.9c अन्वगच्छन्हि पृष्टतः VII. 25.38b अन्वगात्पृष्ठतः सा गौः VII. 53. 130 अन्वगादनुसारिणाम् I. 31.17b अन्ववाहमिच्छामि II. 22. II अन्वजाग्रत्ततो रामम् II. 50.50c अन्वतप्यत धर्मात्मा II. 42. IIc अन्वधावस्तदा रोषात् IV. 52. 360 अन्वयुर्भरतं यान्तम् II. 83.3c ,, 4C 39 " 19 5c अन्वयुश्च महाहवे VI. 82.6d अन्वयुः सर्वराक्षसाः VII. 31.41b अन्वयू राक्षसा भीमाः VI. 65.37c अन्ववेक्ष्य महारथः II. 50.27b अन्वशासच्च देवराट् VII. 30.50b अन्वशासद्वसुंधराम् I. 7.20d अन्वशोचन्त राघवौ VI. 46.3d अन्वास्यते राक्षसनाशनार्थे VI. 14.17C अन्वास्य पश्चिमां संध्याम् III. 7.23a अन्वास्यमानो न्यवसत् III. 15.3IC अन्वियाय सुमित्रा च VII. 99.15a अन्वियेष महाबुद्धिः I. 61,9c अन्विषंस्तत्र तत्र ह VII. 53.10b अन्विष्य रक्षसां लङ्काम् V. 26.21a अन्विष्य वानरैः सार्धम् III. 72.25a अन्वीक्ष्य दण्डकारण्यम् IV. 41.11 37 37 "? Jain Education International " ३६ अन्वीक्ष्य मनसा सर्वम् VI. 19.17c अन्वीक्ष्यमाणो रामस्तु II. 40.39a अन्वीक्ष्य वरदांश्चैत्र IV. 43.12 अन्वीयमानस्तैर्वाली VII. 34.24 अन्वीयमानो मेघौघैः VII. 34.24c अन्वीयमान रक्षोभि: V. 53.18c अन्वेषमाणास्ते सर्वे IV. 48.4a अन्वेष्टव्या हि वैदेह्या II. 46.9c अन्वेष्टव्यो नरेश्वराः VII. 44.20d अन्वेष्टुं तं महामुनिम् VII. 71.24b अन्वेष्टुं स्वसखीजनम् VII. 2. 21d अन्वेष्यति वरारोहाम् III. 72.26c अपः कनककुम्भेषु IV. 26.33c अपकारः क इह ते II. 38.7c अपकारं कमिव ते II. 388c अपकारिषु ते राम IV. 17.46c अपकारोऽरिलक्षणम् IV. 8.21b VI. 127.46d अपः कुक्षिष्वशोषयत् VI. 22.36d अपकुर्वन्हि रामस्य V. 51.33a अपकृष्टः स लक्ष्मणः IV. 33.27b अपक्रमणमेवातः II. 34.40c अपक्रम्य तदात्रवीत् III. 2. 1ob अपक्रम्य तदा वीर: V. II.47c अपक्रम्य रथात्तूर्णम् VI. 43.37c अपक्रम्य स वीर्यवान् VI. 96.20b अपक्रम्य सुविक्रान्तः VI. 96.23c अपक्रम्याश्रमपदान् V. 34.3IC अपक्रान्तस्ततस्त्रस्तः VII. 35.32c अपक्रान्ते च काकुत्स्थे III. 40.20a 40.22a अपक्रान्तेष्वमात्येषु VII. 32.49a अपक्रान्तो निशाचर: VII. 8.16d अपक्रामत्सरः पुण्यम् VII. 82. IC अपक्षिगणसंपातान् VII. 34.27a " " " For Private & Personal Use Only " www.jainelibrary.org

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