Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 48
________________ अपोह्य रामं कस्माच्चित् V. 22.220 [ अ ] यङ्गदस्य निवेशिता VII. 102.8b अप्यज्येष्ठा हि राजानः II. 58. 200 अप्यत्र गच्छेदिति चिन्तयामि III. 63.13c अध्यर्कमपि पर्जन्यम् V. 39.16a अप्यस्वरं सुस्वरविप्रलापा III. 63.7c अप्यहं जीवितं जह्याम् III. 10.18c VII. 45.14C अप्यहिंसा च भूतानाम् II. 12.330 अयावां युगपत्प्राप्तौ IV. 61.5a अप्युपायैस्त्रिभिस्तात VI. 9.8a अप्येकमनसो जग्मुः II. 103.36c अप्येकमेकं पुरुषम् II. 91. 53c अप्येकरात्रिं काकुत्स्थ VII. 42.35a अप्येव दहनं स्पृष्ट्वा VI. 29.12 " "" कम्प्यो यथा स्थाणु: VII. 37.7a अप्रकम्प्यौ नरव्याघ्रौ III. 3.21c अप्रकाशां निशामिव II. 114.2d अप्रगल्भा इवाहवम् III. 16.22d अप्रग्रहमनायकम् II. 64.34d अप्रजाः सन्तु पत्नयः I. 36.22d अप्रजास्मीति संतापः II. 20.37c अप्रतिग्रहणादेव I. 45.350 अप्रतिद्वन्द्वमाहवे I. 76.18d V. 20.19d "" VI. 46.9f अप्रत्यक्ष तु मे वीर्यम् IV. 11.79c अप्रदाने पुनर्युद्धम् VI. 57.140 अप्रधृष्यपराक्रमम् II. 1. 34b अप्रधृष्यश्च संग्रामे II. 1. 30a अप्रधृष्यां पुरीं लङ्काम् VI. 1.4c अप्रमत्तं कथं तंतु VI. goa अप्रमत्तश्च यो राजा III. 33.20a अप्रमत्तश्च संयुगे VI. 107.62b अप्रमत्तस्त्वमवेषु II. 46.11c ६ 13 Jain Education International ४१ अप्रमत्ता तथा कुरु II. 24.24b अप्रमत्तेन ते भाव्यम् III. 43.49c अप्रमत्तो बले कोशे II. 52.72a अप्रमत्तैः प्रवेष्टव्यम् IV. 43.25c अप्रमत्तैश्च सर्वत्र VI. 72.11a अप्रमत्तो धनुर्धरः II. 50. 5od अप्रमादं च वक्तव्या II. 58.17c अप्रमादश्च कर्तव्यः IV. 50.520 अप्रमादाच्च गन्तव्यम् III. 54.27a अप्रमादिभिरेकाग्रैः II. 16.2c अप्रमेयं च ते बलम् I. 65.35b अप्रमेयं तपस्तुभ्यम् I. 65.35a अप्रमेयं नरर्षभ VII. 67.25b अप्रमेयप्रभावश्च IV. 29.17C अप्रमेयबलं घोरम् I. 31.8c अप्रमेयबलाः केचित् V. 43.23c अप्रमेयबला वीराः I. 17.18a अप्रमेयबलाश्चान्ये VI. 41.48c अप्रमेयमनुत्तमम् VII. 67.22d अप्रमेयं बलं तुभ्यम् I. 54.15a अप्रमेयं हि तत्तेजः III. 37.18 अप्रमेया गुणाश्चैव I. 65.35c अप्रमेयानरूपिणः I. 21.16d • अप्रमेयो महोदधिः VI. 19.31b अप्रविष्टं च भवनम् VII..63.29a अप्रविष्टं पुरं पूर्वम् VII. 63.28c अप्रवृत्तौ च सीतायाः VI. 53.15a अप्रशस्ता मृगद्विजाः VI. 41.16d अप्रशस्तैरशुचिभिः II. 116.15a अप्रशस्यं प्रशंससि III. 29.16d अप्रसन्नमनाः किं नु II. 18. 12a अप्रसायादितेः सुतम् VII. 35.63f अप्रहृष्टबलां शून्याम् II. 88.25a अप्रहृष्टमनुष्या च II. 59.15a अप्रहृष्टा भविष्यन्ति II. 8. 120 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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