Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 52
________________ अब्रवीलक्ष्मणः क्रुद्धः III. 2.22c , , IV. 34.6c अब्रवीलक्ष्मणं तारा IV. 35.IC अब्रवीलक्ष्मणं प्रीतः VI. I9.24c अब्रवीलक्ष्मणं वाक्यम् III. 2.16c अब्रवीलक्ष्मणस्त्रस्ताम् III. 45.10a अब्रवीलक्ष्मणः सीताम् III. 45.28a. अब्रवीलक्ष्मणो रामम् II. 46.24a अब्रायणस्तदा राजन् VII. 74.10a अब्रुवञ्जगतीभर्तुः II. I03.I7c अब्रुवन्परमप्रीता: VI. 120.19a अब्रुवन्परमोद्विग्नाः V. 62.17a अब्रुवन्मधुराक्षरम् I. 68.3d अब्रुवन्मन्त्रिणः सर्वे II. II5.4c अब्रुवन्मां महर्षयः IV. 59.18b अब्रुवनराक्षसपतिम् VII. 31.13a अब्रवन्रावणं सर्वे VI. 9.5c अब्रुवन्वचनं सर्वे III. II.I3c अब्रुवन्सूर्यसंकाशाम् V. I.I37c अब्रुवं मैथिली तथा V. 67.36b अब्रुवल्लोककर्तारम् I. I5.5c अब्रुवंश्चापि रामेण II. I03.35a अब्रुवंत्रिदशश्रेष्टाः VI. II7.5c अब्रूतां कौशिकं वचः I. 30.Id अब्रूतां राक्षसाधिपम् VI. 25.27b अब्भर्वायुभक्षश्च I. 51.26c अभक्ष्याणि च मांसानि IV. I7.38c , ,400 अभग्नशिरसः केचित् VI. 54.8a अभयं ते प्रदास्यामि V. 63.2c अभयं ते प्रयच्छामि V. I.I32c अभयं दातुमर्हसि I. 75.6d , , VII. 6.8b अभय भयदर्शिनाम् II. 46.29d अभयं भयदोऽरीणाम् VII. 6.19c अभयं यस्य सङ्गामे III. 32.19a अभयं याचिता वीर VII. 61.22c अभयं सर्वभूतेभ्यः VI. 18.33c अभवच्च महान्क्रोधः VI. 98.23c अभवच्छरपीडितम् VII. 28.16d अभवच्छोणितोद्गारी IV. 16.22c ,, VI. 54.25a अभवच्छोणितीक्षिता VI. 69.55b अभवत्कांचनप्रभम् V. I.98d अभवत्पाण्डुदेहा सा VII. 2.17c अभवत्प्रीतमानसः V. 55.34d अभवत्प्रीतिमान्कपि: V. 3.17d अभवत्संवृताकारः V.45.8c अभवत्सुदिने काले VI. 55.IIC अभवद्वाष्पसंरुद्धः IV. 6.16c अभवद्भक्षणे मतिः II. 91.63d अभवद्रोमहर्षणम् I. 75.16d ., VI. 76.18d अभवद्वानरः क्रुद्धः V. 46.36c अभवद्विश्रवा मुनिः VII. 2.33d अभवन्निर्विचेष्टश्च V. 48.38c अभवन्पन्नगास्त्रस्ताः VI. 50.35a अभवन्पादपास्तत्र VI. I24.21a अभवलक्ष्मणः प्रीतः IV. 36.12c अभवल्लोमहर्षणम् VII. 27.45b अभवं हृष्टमानसः V. 58.165b अभव्यो भव्यरूपेण III. 46.9c ,, ,, IV. 17.28c अभार्याः सहभार्याश्च IV. 19.16a अभावाय समुत्थिताः VII. 6.53d अभाष्य च विमृश्य च VI. 18.4b अभास्करममर्यादम् IV. 40.68c , , 42.5IC " , 43.58c | अमिकालं ततः प्राप्य II. 68.17a Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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