Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 54
________________ ४७ अभिज्ञानं च रामस्य V. 40.4a अमिज्ञानप्रदानं च I. 3.31a अमिज्ञानमनिन्दिते V. 40.17b , 67.29d अभिज्ञानमभिज्ञातम् V. 39. Ic अभिज्ञानमयाचितम् V. 58.102d अमिज्ञान प्रयच्छ त्वम् V. 38.10c अमिशान मणिं लब्ध्वा VI. I26.45c अमिशानं मया दत्तम् VI. 126.45a , , , 46c अभिज्ञाय सुदुःखिता VI. 32.3b अमिज्ञा राजधर्माणाम् II. 26.4c अमिजास्मि यथा भर्तुः II. 39.27c अमितप्ताः स्म सूर्येण IV. 40.42c अभितः पावकोपमम् II. 99.26d अभितर्व्य महास्वनः III. 49.20b अभितुष्टाव मातलि: II. 14.48b भाभितुष्टाव राघवम् II. 15.21b असिनाप वै सुरौ I. 62.25b अभितो गुणवन्तब I.7.18a अभित्वरय सुग्रीव VI. 123.29a अभिदुद्राव काकुत्स्थम् I. 26.25a अभिदुद्राव तदक्षः VI. 56.13c अभिद्राव बलिनम् VI. 58.5IC अभिदुद्राव मारुतिः VII. 35.44d अभिदुद्राव रक्षांसि VII. 32.40c अभिदुद्राव राघवम् VI. 67.14Id अभिदुद्राव वानरान् VI. 7I.4d अभिदुद्राव वेगवान् VI. 70.2d अभिद्राव वेगितः VI. 67.133d " , , 76.22d अभिदुद्राव वेगेन VI. 67.52c " , , 70.63a " , , 76.42c » » » ), 46c | अभिदुद्राव वैदेहीम् VI. 92.4IC अभिदुद्राव सायकैः VI. 70.9d अभिदुद्राव सुग्रीवः VI. 76.64a , , 97.IIC अभिदुद्राव सेनां ताम् VII. 24.3c अमिदुद्राव हैहयम् VII. 32.67d अभिद्रवणमाप्लावम् VI. 40.25a अभिद्रवाशु यावद्वै VI. 86.4c अभिद्रुतमिवारण्ये II. 8.36a अभिद्रुतस्तु वेगेन IV. IO.I0c अभिधानप्रगल्भस्य III. 30.3c अभिनन्दन्ति भूतानि V. 21.13c अभिनन्दाम ते सर्वे VII. I.27a अभिनन्द्य च राघवः VI. 4I.Iob अभिनन्द्य समापृच्छय II. II6.24a अभिनिर्यान्तु रामस्य VI. 127.5a अभिनिर्याय वीर्यवान् II. 7I.Ib अभिनिष्क्रम्य तद्वारम् VI. 51.2ra अभिनिष्कम्य मैथिलि VI. 33.7d अभिन्दं सत्पधा देवि I. 46.23c अभिपत्याशु तद्वक्रम् V. 58.32a अभिपत्स्ये शुभं हित्वा II. I09.6c अभिपन्नामनिन्दिताम् II. 50. Igd अभिपूज्य तदा हृष्टा I. 14.5a अभिपूर्णा महारथैः I. 5.22b अभिपेतुः पुरीं लङ्काम् VI. 93.33c अभिपेतुर्महाकायाः VI. 76.17a. अभिपेतुर्महात्मानः VI. 7I.38c अभिपेतुर्महाभागाः V. 42.27c अभिपेतुर्हनूमन्तम् V. 45.6c अभिपेतुश्च गर्जन्तः VI. 82.6a अभिपेतुस्ततस्ततः V. 42.38d , 46.22b अभिपेतुस्ततः सर्वे II. 77.10a | अभिपेतुः समुत्पत्य VI. 83.TIC Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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