Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 44
________________ अपक्षो हि कथं पक्षी IV. 59.23a अपगच्छत पश्यध्वम् V. 27.34a अपगच्छतु ते दुःखम् II. 34.46a अपतश्चास्य गात्रेषु VII. 85.16c अपतद्देवराजस्य IV. 17.20 अपतिः काननान्तेषु VII. 88.1gc अपतिश्चास्मि भद्रं ते I. 33.17a अपत्यं कथ्यमानं तु VII. 50.420 अपत्यं तु मृगाः सर्वे III. 14.23a अपत्यं परमाद्भुतम् VII. 3.5d अपत्यं मनुजर्षभ III. 14.26b अपत्यलाभः सुमहान् I. 38.7a अपत्य लाभो वैदेही VII. 42.31C अपत्यं स्वेषु दारेषु I. 36.22a अपथ्यं पथ्यसंनिभम् II. 1o9.2d अपथ्यञ्जनोपेतम् II. 12.71a अपथ्यैः सहसंभुक्ते II. 64.59c अपदानान्युदाहृत्य II. 65.4c अपदेशो मे जनकात् VI. 116.15a अपतनम् VI. 40.25d अपध्वंसत नश्यध्वम् VI. 29.14a अपनीता त्वयाऽधम V. 21.30d अपनीय च लक्ष्मणम् VI. 111.6gb अपनीयाश्रमाद्रामम् VI. III. 68c अपनेष्यति मां भर्ता V. 21.28a अपनेष्यति राघवः II. 83.9b अपनेष्यामि संतापम् V. 35.77a अपयाते त्वयि तदा VI. 126.1oa अपयाहि जनस्थानात् III. 21. 18a अपरं किं तु कृत्वैवम् VII. 20.31e अपरं चन्द्र संकाशम् VI. 128.29c " _128.6ga अपरत्राधिकान्मासान् III. 11.25c अपरा जनयिष्यति I. 38.8d अपरां च दिशं प्राप्तः IV. 46.18c 92 Jain Education International در अपरा त्वङ्कमन्यस्याः V. 9.60c अपराधकृतो गतान् IV. 53.14d अपराधं कमुद्दिश्य II.12.a अपराधं च कं प्राप्य VII. 4.6c अपराधं तु यं दृष्ट्वा III. 68.5c अपराधं विना हन्तुम् III. 9.25c अपराधात्तवैकस्य V. 21.120 अपराधिषु यो दण्ड: VII. 79.9a अपराधेऽपि तादृशे VII. 54.15b अपराध्यति निर्भयः VII. 36.28d अपरावर्तिनां या च III. 68.2gc अपराश्चन्द्र रश्म्याभैः VII. 77.13c अपराश्वोदकं शीतम् II. 91. 15c अपरासांश्च वैदूर्याः V. 9.49a अपरे तु हनूमन्तम् V. 57.43 अपरे दुर्जयं रक्षः VII. 16.48a अपरेsपूरयन्कूपान् II. 80. ga अपरे भ्रातरस्तस्मिन् II. 73.200 अपरे वानरश्रेष्ठाः IV. 39.42a अपरे वीरणस्तम्बान् II. 80.8a अपरे वृक्षमूलेषु V. 62. 11c अपरे समरे हर्षात् VI. 41.970 अपरे स्फोट्य विक्रान्ता: VI. 50.63a अपरे हेमकक्षामि: VI. 127.12C अपर्वणि महाग्रहः III. 23.rrb अपर्वतनदीवृक्षम् IV. 43.19c अपवर्तामहे भूमौ II. 53.4c अपवादं च सर्वतः VI. 115.16b अपवादभयान्नृप VII. 52.15b अपवादभयाद्भीतः VII. 45.15a अपवादः स किल ते VII. 52.14c अपवादः समुत्थितः VII. 4. 13 अपवादात्परित्यक्ता VII. 96.15c अपवाह्य तु दुष्टात्मा II. 7.26a अपवाह्य त्वया देवि II. 9.16a For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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