Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 45
________________ अपवाह्य नृपात्मजौ I gad अपविद्धश्च भग्नश्च III. 64.48a अपविद्धशरासनम् V. 18.23d अपविद्धानि कैकेय्या II. 10.7a अपविद्धैर्महाधनैः V. 11.1gb अपविद्धैश्वापि रथैः VI. 43.43c अपवृण्वंश्च द्वाराणि V. 12 16a अपवृत्तं त्वया संख्ये VI. 119.3c अपश्यच्छोक संतप्तम् II. 26.6c अपश्यज्जगतीपतिम् II. 34.3d अपश्यतस्तां वनिताम् IV. 1.33c अपश्यतस्तु मे रामम् II. 12.13a अपश्यतां ततस्तत्र III. 744c अपश्यती राघवलक्ष्मणः वुभौ III. 52.44c अपश्यतोऽभवदतिदुःखितं मनः V. 7. 170 अपश्यतो मुखं तस्याः IV. 1. rogc अपश्यतो मे वैदेहीम् IV. 1. 670 अपश्यतो मे सौमित्रे IV. 1.31a अपश्यत्पद्मगन्धीनि V. 9.36c अपश्यत्पाण्डुरे गृहे II. 57.24d अपश्यत्स यमं तत्र VII. 21.2a अपश्यत्सलिलाकुलम् VI. 4.93d अपश्यत्सैनिकांचास्य VII. 21.11a अपश्यद्रुमया सार्धम् VII. 4.28a ture कर्मजम् VII. 2.23d अपश्यद्गतचेतनः I. 43.41b अपश्यद्भवनं राजा II. 42.30c अपश्यद्राक्षपतिम् V. 49.14a अपश्यद्राक्षसाधिप: VII. 23.20d अपश्यद्राक्षसीमध्ये III. 55.3c अपश्यद्रावणो नदीम् VII. 32. Iod अपश्यद्रावणो विन्ध्यम् VII. 31.15a अपश्यद्विमलं छत्रम् III. 5.9a अपश्यद्वयूहमाश्रितम् VI. 85.33d अपश्यन्त गिरिश्रेष्ठम् VI. 4.37c Jain Education International છૂટ अपश्यन्तस्तु ते सर्वे VII. 74.14 M अपश्यं तस्य पितरौ II. 64.4c अपश्यन्ती तव मुखम् II. 20.47a अपश्यन्ती सुदुःखिता V. 26.34b अपश्यन्तोऽत्रवन्को नु II. 15.14 अपश्यन्त्या न तं यद्वै II. 61. ge अपश्यन्त्याः प्रियं पुत्रम् II. 43.20c अपश्यन्त्यो भयस्यान्तम् VI. 94.25c अपश्यन्दयितां भार्याम् II. I0. 18a अपश्यन्नगरं श्रीमान् II. 17.2a अपश्यन्निव भूमिपः II. 14.13b अपश्यन्निहतानन्दम् II. 47.18c अपश्यन्मन्मथार्दित: III. 62.2b अपश्यन्ाघवं नाथम् IV. 12.21 अपश्यन्राघवो भार्याम् V. 13.5IC अपश्यन्रामलक्ष्मणौ II. 73.14b अपश्यमानस्तत्रापि VII. 75.11a अपश्यमानस्तं देशम् VII. 79.16a अपश्यमानो वैदेहीम् VII. 99.4a अपश्यमिषुणा तीरे II. 63.36a अपश्यमिषुणा हृदि II. 64.16b अपश्यलक्ष्मणः क्रुद्धः IV. 31.26c अपश्यंस्तां प्रियां सीताम् III. 61.3IC अपश्यंस्ताः स्त्रियः सर्वाः II. 65.24c अपश्यंस्तु ततस्तत्र II. 72.1a अपश्याव महीतले IV. 61.5b अपः सलिलसंभव: VII. 4.gb अपसव्यं ततः कुर्यात् VI. 106.15a अपसृत्यागतो विन्ध्यम् VII. 31.14a अपसृष्टा रणाजिरात् VII. 32.48d अपस्नात इवारिम् II. 42.22c अपहासं प्रमुक्तवान् VII. 16.16d अपहासेन चिक्षेप VI. 67.49c अपहास्य ततो वाक्यम् I. 32. 18c अपहृत्य शची भार्याम् III. 48.23a For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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