Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 30
________________ अद्रिमूर्ध्नि प्रतिष्ठितम् V. 4.25b अद्रिराजप्रतीकाशाः V. 35.530 अद्रोहाय समागम्य III. 72.18a अद्वारेण महावीर्यः V. 4 2a अद्वैधं छिद्रविर्जितम् VII. 36.3gb अधनेनार्थकामेन VI. 83.38c अधनो लभते धनम् VII. 11.5b अधर्मचारिणौ पापौ III. 2.12a अधर्मं चाप्यधर्मतः VI. 83.19b अधर्मं जहि काकुत्स्थ VII. 63.8c अधर्मं तु सुसूक्ष्मेण III. 9.2a अधर्मं त्विह धर्मात्मा II. 61. 200 अध धर्मवेषेण II. 109.6a अधर्मः परमो राजन् VII. 74.27a अधर्मः पादमेकं तु VII. 74.15 अधर्मः प्रगृहीतश्व VI. 35.150 अधर्म फलसंहितम् V. 51.26b अधर्मभयभीतश्च II. 53.26a अधर्ममूलं बहुदोषयुक्तम् V. 52. 12a अधर्मे परिवर्जयन् I. 7.21d अधर्मयुक्तं कुलनाशयुक्तम् IV. 24.15C अधर्मयोगं मम वीर घातात् IV. 24.3gd अधर्म विद्म काकुत्स्थ VII. 63.2a अधर्मश्चानृतं चैव VII. 74.23c अधर्मसंश्रितो धर्मः VI. 83.30a अधर्मसहितं चैव VII. 63.6c अधर्मसहिता नार्यः I. 25.22a अधर्मः सुमहान्नाथ III. 6. tra अधर्मं स निषेवताम् 1. 75.42b अधर्मात्तु महोत्पातः V. 26.32a अधर्मानर्थयोः प्राप्तम् VI. 64. Sc अधर्मानृतसंयुक्तः VI. 111.98c अधर्मिष्टं विगर्हितम् II. 23.12d अधर्मे चानृते च ह VII. 74.21b अधर्मेण महीतले VII. 74.18b Jain Education International २३ अधर्मेण हि संयुक्त: VII. 74.15c अधर्मो ग्रसते धर्मम् VI. 35.14C अधर्मोऽयमिति द्विज: I. 2. 14b अधर्मो योऽस्य सोऽस्यास्तु II. 75.23c 25c 29 "" अधर्मो रक्षसां पक्षः VI. 35.130 अधर्मो वा परंतप VI. 83.2gb 9: 19 33 [ अ ]धर्मोहिते हि नः VI. 35.16b अधर्म्या जहि काकुत्स्थ I. 25.19c अधर्म्य दुष्टचारिणीम् II. 48.24d अधर्षयितुमिच्छसि VI. 88.46d अधर्षितानां शूराणाम् IV. 16.3a अधः शय्या विवर्णाङ्गी V. 59.27a 65.15a अधस्ताच्चोदरं शान्तम् II. 9.42a अधस्ताच्छिशपामूले V. 59.21c अधस्ताद्व्रजतस्तस्याः II. 74.17a अधारययो विविधाः II. 99.33a अधार्यं चर्म मे सद्धी IV. 17.38a अधिकं कर्म शास्त्रतः I. 14.4d अधिकं परिवभ्राज III. 52. 150 अधिकं पुरवासाच II. 95.120 अधिकं प्रविभात्येतत् IV. 1. 8a अधिकं मलिनां कृशाम् V. 15.26d अधिकं मूर्ध्नि शोभते V. 66.4d अधिकं मेनिरे विष्णुम् I. 75.20a अधिकं शैलराजस्तु VI. 4. 76a अधिकं शैलराजोऽयम् IV. 1.74a अधिकं शोभते पम्पा IV. 1.99c अधिकस्तेन रूपेण VII. 37.23c अधिकां पुष्यति श्रियम् V.11.20b अधिक्षिप्तस्तदा राम: IV. 18.3c अधिगच्छदिशं पूर्वाम् IV. 40. rga अधिगन्तासि वैदेहीम् III. 69.40a अधिगन्तुं त्वमिच्छसि III. 47.41d 99 For Private & Personal Use Only $9 " 33 www.jainelibrary.org

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