Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 38
________________ अनृतं नोक्तपूर्व मे I. 58.Igc , , IV.7.22a " , , I4.14c " , VI. 48.29a अनृतं पातयित्वा तु VII. 74.17a अनृतं बत लोकोऽयम् II. 30.4a अनृतं वचनं तेषाम् VI. 32.12c अनृतं वदतश्चापि V. 50.IIc अनृतान्मोचयानेन II. III.32c अनृतैर्बत मां सान्त्वैः II. 12.77a अनृशंसेन रामेण VI. 29.27c अनेकगन्धप्रवहम् V. 15.14c अनेकनानाविधपक्षिसंकुलाम् III. 75.30c अनेकरूपाकृतिवर्णनादाः IV. 28.38c अनेकवर्ण पवनावधूतम् IV. 28.19c अनेकवर्णा विविधाः V. 14.10c अनेकवर्णाः सुविनष्टकायाः IV. 30.44a अनेकवर्षसाहस्रः II. 2.21a. अनेकवार्षिको यस्तु III. 68.21a अनेकशतसाहनम् II. 9.56a अनेकशतसाहस्रीम् IV.66.1a अनेकशो वध्यमाना: VI. 67.41a अनेकसंस्थानविशेषनिर्मितम् V. 8.4c अनेकान्मृगयूपपान् III. 69.32d अनेकैर्बहुविक्रमैः IV. 40.7b अनेकैबहुसाहस्रः IV. 39.15c , 39.18a अनेकैर्विचकर्ततुः VI. 80.31d अनेन कारणेनाह II. 54.25c अनेन कृतकृत्योऽस्मि III. 4I.I7c अनेन क्रोधवाक्येन III. 59.22c अनेन च परामृष्टः VII. 35.32a अनेन च भवान्प्राप्तः I. 44.I3c अनेन च महाराज VI. 7.1ga अनेन च स वै दृष्टः VII. 35.39c अनेन चोक्तं यदिदं ममाग्रतः V. 32.14c अनेन तपसा त्वां हि I.57.6a अनेन तव तिष्ठता VI. 20.30b अनेन तु नृशंसेन V. 26.30a अनेन तु वनं दुर्गम् II. II9.2IC अनेन त्वां हरिश्रेष्ठ IV. 44.13a अनेन दण्डकारण्ये III. 68.20c अनेन दत्तानि वनीपकेषु VI. I09.22a अनेन दानेन न लप्स्यसे त्वम् IV. 24.39c अनेन दुःखेन न देहमर्पितम् II. 20.5IC अनेन दुष्कृतेन त्वम् VII. 56.24a अनेन धनुषा रामः III. 12.35a | अनेन धर्मशीलेन II. III.3ra अनेन निर्जिता देवाः VI. 67.147c अनेन निहता राम III. 43.6c अनेन नूनं प्रतिदुष्टकर्मणा V. 12.3c अनेन प्रेषिता ये च VI. 33.17a अनेन बहुधा श्रुतम् IV. 3.29b अनेन भक्षिता ब्रह्मन् VII. I0.38a अनेन राक्षसेन्द्रण III. 49.38c अनेन रात्रिशेषेण V. 30.12a अनेन रूपेण मया V. 2.31a अनेन लवणं सौम्य VII. 63.19c अनेन वनवासेन II. 94.17a अनेन वपुषा तात III. 7I.I6c अनेन वयसा दृष्ट्वा II. I.40c अनेन शरमुख्येन VII. 63.23c अनेन शिशुना कार्यम् VII. 36.9a अनेन शूलमुख्येन VII. 67.2c अनेन श्रेयसा सद्यः II. 2.14a अनेन सह ते यात्रा III. I7.27c अनेन सह रूपेण I. 59.40 अनेन सीता वैदेही III. 67.IIa अनेन हि समासाद्य VI. 7.22a अनेनाश्वोऽपनीयते I. 39.26b Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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