Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 37
________________ अनुरक्तं च भक्तं च VI. II2.Ioa अनुरक्तं निशाचरम् VI. 38.2b अनुरक्तः प्रजामिश्च II. I.IAC अनुरक्तश्च भक्तश्च III. 34.13c अनुरक्ता महात्मानम् II. 45.za अनुरक्तां यशस्विनीम् VI. 120.20b अनुरक्तास्मि धर्मेण II. II8.54c अनुरक्ता हि मनुजाः II. 46.5a अनुरक्ता हि वैदेही V, 59.24a. अनुरक्तेन बलिना VI. IIQ.20a अनुरक्तरधिष्ठितम् VI. I0.3b अनुरक्तः सहामात्यैः IV. II.77c अनुरक्तोऽस्मि भावेन II. 21.16a अनुरञ्जन्ति राजानः VII. 99.IIC अनुरथ्यासु सर्वशः II. 6.18d अनुरागं च वीर्य च VI. II2.3a अनुरागेण रूपेण V. 35.22c अनुरागेण लोकांस्त्रीन् VII. 84.5c अनुराजानमार्या च II. 58.I9c अनुरुध्यापि सौमित्रे VII. 48.5c अनुरुध्यामहे ब्रह्मन् I. 76.2c अनुरूपकुलाः पत्न्यः III. 30.IIC अनुरूपं च युक्तं च IV.7.17c अनुरूपं तवैव तन् II. II5.5d अनुरूपमसंक्लिष्टम् II. II8.I9c अनुरूपं महात्मनः V. 39.31b अनुरूपं महात्मनः V. 56.13b अनुरूपं महात्मन: V. 68.150 अनुरूपश्च ते भर्ता III. 18.4c अनुरूपः स नो नाथः II. 2.13a अनुरूपः स वो भर्ता II. 45.8c अनुरूपाणि कर्माणि IV. 22.12a अनुरूपाविमौ बाहू II. 23.39a अनुलिप्तं परार्थेन II. 16.9c अनुलिप्ता इव धनैः IV. 28.13c | अनुलिप्ता इवाभान्ति IV. 30.27c अनुवत्स्यति पूर्वजम् II. 37.27d अनुवर्तामहे सौम्य VII. 59.22c अनुवाति शिवो वायुः VI. 4.46c अनुवालिसुतस्यापि VI. 26.21a अनुवृत्तनखाः स्निग्धाः VI. 48.roc अनुव्रजितुमिच्छन्ति II. 26.14c अनुव्रजिष्यामि वनं त्वयैव गौः II. 20.54c अनुव्रजिष्याम्यहमद्य रामम् II. 36.33a अनुव्रतां राममतीव मैथिलीम् V. I9.22c अनुशाधि वसुंधराम् II. 96.25b अनुशाधि स्वधर्मेण II. 106.25c अनुशिष्टं जनन्या मे II. II8.8c अनुशिष्टास्मि मात्रा च II. 27.10a अनुशिष्टोऽस्म्ययोध्यायाम् I. 26.3a अनुशिष्याद्धि को नु त्वाम् III. 66.I7c अनुशोचसि काकुत्स्थम् VI. I25.37a अनुशोचामि मद्धे II. 6331b अनुष्ठास्यति रामस्य II. 37.23c अनुष्वनति मेदिन्याम् VI. 31.29c अनुसृष्टस्तदा काक: V. 38.31a अनुसृष्टं सुरैरेकम् I. 75.12a अनुह्लादो यथा शचीम् IV. 39.6d अनूपेतुर्दशग्रीवम् VI. II.7c अनूत्पेतुर्महात्मानः VI. 69.34a अनूपे सिन्धुराजस्य III. 35.27a अनृणत्वाच्च कैकेय्याः II. II2.6c अनृणः स महाबाहुः II. II3.17a अनृणो जगतीपतेः II. 50.3b अनृणोऽस्मि तथात्मनः II. 4.14d अनृणोऽस्मिन्महावने II. 96.30d अनृतं जिह्वया चाह II. I09.21c अनृतं त्वय्यकरणे VI..83.28c अनृतं न श्रुतं चैव III. 37.12c अनृतं नाम तद्भूतम् VII. 74.16c Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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