Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

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Page 40
________________ ३३ अन्तरिक्ष समासाद्य VI. 80 3ca अन्तरिक्ष स्थितः श्रीमान् V. I.157c अन्तरिक्ष स्थितो भूत्वा VI. 20.20c अन्तरेण स्वरभिन्नैः VI. 17.61c अन्तरेणाञ्जलिं बद्धा IV. 32.170 अन्तर्गतमपि व्यक्तम् I. 77.28a. अन्तर्जलचरा घोराः IV. 40.28c अन्तर्दुःखेन दीनात्मा VI. 84.5c अन्तर्धानगतः श्रीमान् VI. 19.13c अन्तर्धानगतं शुभम् VI. 80.IId अन्तर्धानगतानि च VII. 109.20b अन्तर्धानगता ह्येते VI. 17.21a अन्तर्धान गतेनाजी VI. 88.15a अन्तर्धानगतोऽब्रवीत् VI. 45.Iod ,, 80.16d अन्तर्धानं गता यक्षी I. 26.1gc अन्तर्धानं गतो देवः I. 16.10c अन्तर्धानं तु तच्छीर्षम् VI. 32.40a अन्तर्धाय महानादम् VI. 4.106c अन्तर्बहिश्च पुत्रस्ते II. 9.34c अन्तीम महात्मभिः I. 41.6b अन्तीमानि सत्त्वानि I. 4I.3a अन्तर्हितरथं बलात् VI. 80.41b अन्तर्हितः सूर्यपथं गतोऽपि VI. 20.25c अन्तर्हिता मुनिगणाः II. II2.2a अन्तर्हितैश्चापि तथान्तरिक्षे VI. 21.35a अन्तश्चरति भूतानाम् I. 32.19a अन्तस्तनितनि?षम् IV. 28.IIC अन्तिके यदि वा दूरे IV. 58.10c अन्ते चादौ च मध्ये च VI. II7.9a अन्ते पृथिव्या दुर्धषाः IV. 49.44a अन्ते पृथिव्याः सलिले VI. II7.22c अन्तेष्वपि च पाण्डुभिः IV. 28.5b अन्धकारे न ददृशुः VI. 45.6c अन्धाविति विलप्य च II. 64.18d अन्नकूटाश्च दृश्यन्ते I. 14.15a अन्नं चैवान्नदायिनः VII. 21.19b अन्ननिस्यन्दजातानि IV. 37.29a अन्नपानादिवस्त्राणि VII. 92.5a अन्नपानानि वस्त्राणि VII. 91.27a अन्नपानैः सुविहिताः I. 14.14c अन्नमुच्चावचं भक्ष्याः II. 87.15a अन्नवद्भिः क्रतुशतैः II. 4.12c अन्नस्योपद्रवं पश्य II. I08.1gc अन्नं हि विधिवत्स्वादु I. 14.17a अन्नानां निचयं सर्वम् I. 52.23c अन्यः कृष्णाजिनमदात् I. 4.21c अन्यच्छिखरमुत्तमम् IV. 2.7d अन्यत्र गरुडाद्वायोः VI. I.3c अन्यत्र च हनूमतः IV. 64.13d , , , I.3d अन्यत्र न त्वयोध्यायाम् VII. 51.26c अन्यत्र पुरुषर्षभात् II. 12.26d अन्यत्र वालितनयात् IV. 64.13c अन्यत्र समकारयत् VII. 81.17b अन्यत्रापि वरस्त्रीणाम् V. II.9a अन्यथा कुर्वतामेवम् VII. 19.3c अन्यथा क्रियमाणे तु VII. 63.30a अन्यथा खलु काकुत्स्थ III. 12.29a अन्यथा तु फलं तुभ्यम् VII. 80.IIC अन्यथा त्वनुनेष्यामि I. 20.27c अन्यथा त्वं हि कुर्वाणः V. 21.22c अन्यथा न भविष्य सि V. 23.Igd अन्यथा नाशमेष्यति VII. 61.8d अन्यथा परिवर्तते IV. 22.14d अन्यदत्रं चकार सः VI. 99.41d अन्यदत्रं महाद्युतिः VI. I00.2b अन्यदा किल धर्मज्ञा II. 74.15a अन्यदा मां पिता दृष्ट्वा II. I8.9a । अन्यदेवापरं घोरम् IV. 48.23a. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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