Book Title: Valmiki Ramayana Pada Suchi Part 1
Author(s): Govindlal H Bhatt
Publisher: Oriental Research Institute Vadodra

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ अनासादयमानं तम् III. 61.12c अनासाद्य पदं देव्याः V. 35.58c अनासाद्यमचिन्त्यं च VI. 99.31c अनासाद्यैव पतितः VI. 28.14c नासिकां सिंहमुखीम् V. 22.36a अनास्वदितपूर्वाणि I. 10.21c अनाहारः कथं शक्तः III. 71. 120 अनित्यत्वात्तु चित्तानाम् IV. 32.7c अनित्यमिति मे मतम् II. 4.27b अनित्यहृदया हि ताः II. 39.23d अनिद्रं लोकमिच्छन्ती I. 25.21c अनिद्रं षडहोरात्रम् I. 30.5C अनिद्रः सततं रामः V. 36.44a अनिमीलितलोचनैः IV. 52.28b अनियोगे नियुक्तेन II. 66.7a अनिरस्तः स संयुगे VI. 34.25d अनिर्विण्णस्तथा कृतः III. 39.2b VII. 34.1d " अनिर्वेदं च दाक्ष्यं च IV. 49.6a अनिर्वेदः परं सुखम् V. 2.10 अनिर्वेदः श्रियो मूलम् V. 12.10a अनिर्वेदाद्भयावहः IV. 10.20b अनिर्वेदो हि सततम् V.12.11a अनिलस्य तु पुत्रोत्र VI. 30.24c अनिलस्यामिना यथा VII. 36.39d अनिलेन यथा घनान् I. 30.15d अनिलोद्धूतमाकाशे VI. 4. 120c अनिवार्यगतिचैव VI. 28. IIC अनिवार्य बलं तस्य III. 45.14c अनिशं दीयमानानाम् VII. 92.17a अनि युञ्जमानानाम् I. 14.13 अनिःश्वसन्कपिस्तत्र V. 2.3c अनिःश्वसन्तं युकं तम् VII. 106.16a अनिष्टानि च पापानि II. 71.30a अनिष्टे सुभगाकारे II. 7.15a Jain Education International २७ अनिष्ठिताशः सः चकार मार्गणे III. 60.38c [ अ ]निहतं रावणं रणे IV. 17.5od अनीकं दशसाहस्त्रम् VI. 93.30a अनीकपास्तु तस्यैते VI. 19.14c अनीकमपि संरब्धम् VI. 27.31a अनीकं यातुधानानाम् III. 24.28a अनीकस्थः कृताञ्जलिः VI. 32:34d अनीकं संप्रहर्षितम् VI. 46.42b अनीकानि प्रहर्षय VI. 74.28b अनीकानि प्रहर्षयन् VI. 26.25b अनीकानि सहस्रशः VI. 24.32b अनीकान्मेघसंकाशान् VI. 69.83c अनीकिनीसा विषमौ VI. 24.1gc अनीकेन न्यवारयत् VI. 81.24d अनीकैः समरे शूरैः VI. 102.51C अनीप्सनीयं स्वनवेक्षणीयम् IV. 24.13b अनीशमनवस्थितम् V. 55.16b अनीशा किं करिष्यामि V. 37.63c अनुकीर्णं सहस्रशः III. 35. Ind अनुकूलतया शक्यम् II. 26.26c अनुकूलं तु सा भर्तुः II. 30.46a अनुकूलश्च भक्तश्च III. 12.3c अनुक्तपूर्वं धर्मात्मा IV. 11.200 अनुक्तवादी दूतः सन् VI. 20. 18e अनुक्तेनापि वैदेहि III. 10.20a अनुक्तोऽप्यत्रभवता II. 19.23a अनुक्तो हि शपेत माम् III. 47.2b अनुक्त्वा परुषं किंचित् III. 36.8a अनुक्त्वा परुषं वाक्यम् VI. 88.2ga अनुक्रोशादिहागतः VI. 125.43b अनुक्रोशान्मृदुत्वाच्च V. 24.29c अनुक्रोशो दया चैव II. 50. Sa अनुगच्छति काकुत्स्थम् V. 38.57a अनुगच्छन्ति योषितः III. 13.6d अनुगच्छति वैदेही II. 44.6c For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182