Book Title: Uttara Purana
Author(s): Gunbhadrasuri, Pannalal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 13
________________ प्रास्ताविक प्रथम संस्करण से आचार्य गुणभद्र कृन उत्तरपुराणके प्रकाशनके साथ जिनसेन और गुणभद्रकृत 'त्रिषष्टि-लक्षणमहापुराण-संग्रह' अपरनाम 'महापुराण' तीन भागोंमें पूर्णरूपसे प्रकाशित हो गया। इस सुप्रसिद्ध संस्कृत ग्रन्थको ऐसे सुन्दर रूपमें विद्वत्संसारके सन्मुख उपस्थित करनेका श्रेय 'भारतीय ज्ञानपीठ, काशी' को है। इससे पूर्व आंशिक अथवा पूर्णरूपमें हिन्दी, मराठी व कन्नड अनुवादों सहित इस ग्रन्थके तीन चार संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। किन्तु उनकी अपेक्षा प्रस्तुत संस्करण अपनी कुछ विशेषताओंके कारण अधिक उपयोगी है। यहाँ संस्कृत पाठ अनेक प्राचीन हस्तलिखित प्रतियोंके मिलानके पश्चात् समालोचनात्मक रीतिसे निश्चित किया गया है, और उपयोगी पाठान्तर अङ्कित किये गये हैं। प्रत्येक पृष्ठपर संस्कृत मूल पाठके साथ-साथ धारावाही हिन्दी अनुवाद भी दिया गया है। हिन्दीकी सुविस्तृत प्रस्तावनामें प्रन्थकारोंके सम्बन्धकी समस्त ज्ञात बातोंका संग्रह कर दिया है, तथा ग्रन्थके कुछ महत्त्वपूर्ण विषयोंका भी परिचय कराया गया है। अन्तमें पद्योंकी वर्णानुक्रमसे सूची भी दे दी गई है। इस प्रकार यह संस्करण धर्मानुरागियोंके स्वाध्यायके लिए और आलोचनशील विद्वानोंके लिए समान रूपसे उपयोगी सिद्ध होगा। महापुराण अपने नामानुसार प्राचीन कालका एक महान् आख्यान है। इसमें जैनधर्मकी मान्यतानुसार चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ बलभद्र, नौ नारायण और नौ प्रतिनारायण, इन वेसठशलाका पुरुषोंका मुख्यतः जीवन-चरित्र वर्णन किया गया है। यहाँ उक्त महापुरुषोंके केवल एक ही जीवनकालका वर्णन नहीं है, किन्तु उनके अनेक पूर्वजन्मोंका भी विवरण दिया गया है, जिससे उनकी धार्मिक व आध्यास्मिक उन्नतिका मार्ग भी स्पष्ट दिखाई देता है। यथार्थतः इन चरित्रों द्वारा धर्मानुरागियोंके समक्ष अनेक आत्माओंके आध्यात्मिक विकासके नाना दृश्य उपस्थित होते हैं जिनसे पाठकोंके हृदय में धार्मिक श्रद्धा एवं आध्यात्मिक आदर्श उपस्थित हो जाते हैं। ___ महापुराणका समस्त आख्यान महाराज श्रेणिकके प्रश्नोंके उत्तरमें भगवान् गौतम गणधरके मुखसे प्रसूत हुआ है। गौतम गणधर और श्रेणिक ये दोनों ही विख्यात ऐतिहासिक पुरुप हैं। चरित्रों के चित्रणमें ग्रन्थकारोंको अनेक परम्परागत रूढ विषयोंके वर्णनका अवसर मिला है, और उन्होंने अपनी रचनामें नाना पौराणिक, धार्मिक, सैद्धान्तिक, सांस्कारिक तथा कर्मकाण्ड सम्बन्धी विवरण उपस्थित किये हैं। इस प्रकार यह ग्रन्थ प्रायः जैनधर्मका विश्वकोश बन गया है। यहाँ हमें मानव समाजके कालानुसार विकासका सजीव चित्रण तथा आदिकालीन महापुरुषोंके लोक-कल्याणकारी कार्योंका परिचय मिलता है। जीवोंके जन्मान्तर वर्णनोंमें हमें समस्त लोक और तत्सम्बन्धी मान्यताओंकी स्पष्ट झाँकिया दिखाई देती हैं। काव्यात्मक वर्णनों, धार्मिक प्रवचनों, नैतिक उपदेशों, रूढिगत स्वमी, नगर-योजनाओं, राजनीति इत्यादि, तथा सिद्धान्त और सदाचार एवं मत-मतान्तरोंके खण्डन-मण्डन व कलात्मक बातोंके वर्णन करनेका कहीं कोई अवसर कुशल कवियोंने अपने हाथसे नहीं जाने दिया। इसका परिणाम यह हुआ है कि आख्यानों में सुन्दर वैचित्र्य आ गया है जिससे ग्रन्थकारोंकी विशाल विद्वत्ता एवं परम्परागत प्रकाण्ड पाण्डित्यका पता चलता है। महापुराण श्रमण संस्कृतिके महापुरुषोंका श्रेष्ठ परम्परागत इतिहास है। यहाँ नाभि आदिक कुलकरों, वृषभादि तीर्थंकरों, भरतादि चक्रवतियों आदिके सुविस्तृत वर्णन बड़े रोचक ढङ्गसे प्रस्तुत किये गये हैं। यहाँ हम राम और रावण, कृष्ण और पाण्डव, तथा बाहुबली, ब्रह्मदत्त, जीवन्धर, वसु, नारद आदि अनेक महत्त्वशाली व्यक्तियोंके कथानक प्राप्त होते हैं जो कथाओंके तुलनात्मक अध्ययनके लिए अत्यन्त उपयोगी है। कविने भरतकी विजय-यात्राके प्रसङ्गमें बहुत-सी महत्त्वपूर्ण भौगोलिक सूचनाएँ दी हैं, जो अनेक बातों में रूढिगत होनेपर भी उपयोगी हैं। कल्पवृक्ष, गणना, त्रैलोक्य, नाना पर्वत, दर्शन, ज्ञानभेद, वैराग्य, कर्मकाण्ड, संस्कार, तप, ध्यान, समवसरण आदिके वर्णनों द्वारा यह रचना धार्मिक व सांस्कृतिक महत्वकी विविध वार्ताओंसे खूब परिपुष्ट हुई है। इनमेंके अनेक सामाजिक व सांस्कृतिक विषय ध्यानसे अध्ययन करने और समझने योग्य हैं। प्रन्थमें सर्वत्र व्याप्त श्रावकधर्म व मुनिधर्मके अतिरिक्त हमें यहाँ प्रभावशाली रीतिसे अभिव्यक्त बहुतसी राजनीति और लोक-व्यवहार-वाता भी मिलती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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