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महावीर के जीवन से संबंधित अनेक चित्रों का अन्वेषण और निर्माण आपकी चित्रकला-प्रतिभा का सुपरिणाम है। जैन-ध्वज का निर्धारण आपकी ही अनोखी सूझवूझ है, जिसे जैन-परम्परा के सभी वर्गों ने स्वीकार कर लिया है। चन्द्रप्रभ का सप्तमुखी चित्र, जो जैन दर्शन के प्रसिद्ध सिद्धान्त सप्तभंगी का चित्र है, संगम देव के साथ क्रीडारत भगवान महावीर का चित्र, राजकुमारावस्था में ध्यानरत महावीर का चित्र जैसे दुर्लभ चित्र खोज निकाले और समाज के सामने पहली बार प्रस्तुत किये। अपनी कृति 'तीर्थकर वर्द्धमान' में जो महावीर-कालीन भारत का मान-चित्र दिया है, वह उनके भूगोल-विज्ञान का प्रदर्शक तो है ही, चित्र-विज्ञान का भी प्रकाशक है।
पूज्य विद्यानन्दजी की सर्वतोमुखी प्रतिभा यहीं तक सीमित न रही, वह आगे भी बढ़ी और उसने उन्हें योग्यतम लेखक तथा ग्रन्थकार भी बना दिया। फलतः 'निर्मल आत्मा ही समयसार', 'आध्यात्मिक सूक्तियाँ', 'अहिंसा-विश्वधर्म', 'तीर्थंकर वर्द्धमान', 'समय का मूल्य', 'पिच्छी-कमण्डलु', 'सम्राट सिकन्दर और कल्याण मुनि' जैसी कृतियाँ उनकी प्रतिभा से प्रसूत होकर 'सर्वजनाय' और 'सर्वहिताय' ख्यात हो चुकी हैं।
इस तरह मुनि विद्यानन्दजी को जो लोकमान्यता और लोकपूज्यता प्राप्त है उससे उन्हें आचार्य गृद्धपिच्छ के शब्दों और आचार्य अकलंकदेव तथा विद्यानन्द की व्याख्याओं में 'मनोज्ञ निर्ग्रन्थ' स्पष्टतया कहा जा सकता है।
___ हम मुनिजी से तभी से परिचित हैं जब वे क्षुल्लक पार्श्वकीति थे और चिन्तनलेखन में सदा निरत थे। दिल्ली के लाल मन्दिर में वे विराजमान थे, तभी उनसे साक्षात् भेंट हुई थी। हमें अपनी 'सम्राट सिकन्दर और कल्याण मुनि' कृति भेंट करते हुए मेरी तत्काल प्रकाशित नयी पुस्तक 'न्यायदीपिका' की आपने बार-बार प्रशंसा की। क्षुल्लक, मुनि जैसे पूज्य एवं उच्च पद पर रहते हुए भी आपकी गुण-ग्राहिता सदा अग्रसर रहती है। विद्वानों के प्रति आपके हृदय में अगाध मान है। उनकी स्थिति और स्तर को उन्नत करने के लिए उनके चित्त में जो चिन्ता और लगन है वह अन्यत्र दुर्लभ है। शिवपुरी में विद्वत्परिषद् द्वारा की गयी "जैन विद्या-निधि" की स्थापना से पूर्व कई वर्षों से उनके हृदय में ऐसी योजना का विचार चल रहा था, जिसे आपने गत महावीर-जयन्ती पर अलवर में आमंत्रित कराकर व्यक्त किया और मथुरा में पुनः आने का आदेश दिया। यहाँ भी महाराज ने अनेक लोगों के समक्ष मेरी 'जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार' कृति की उल्लेखपूर्वक सराहना की। डा. ए. एन. उपाध्ये, डा. हीरालाल जैन, डा. स्व. महेन्द्र कुमारजी, डा. स्व. नेमिचन्द्रजी शास्त्री आदि विद्वानों के साहित्य-सेवा-कार्यों का सोल्लास उल्लेख करते हैं। यह उनकी हार्दिक गुणग्राहिता ही है।
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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