Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 213
________________ शिल्पकृतियाँ उपेक्षित पड़ी हुई हैं। नरवर की सैकड़ों जिन-प्रतिमाएँ अब शिवपुरी के जिला-संग्रहालय में प्रदर्शित, अथवा सुरक्षित हैं। नरवर से ही प्राप्त एक पट्ट में चतुर्विंशति तीर्थंकरों की सलांछन प्रतिमाएँ बनी हुई हैं, जो अपने प्रकार की अनूठी कृतियाँ हैं। ग्वालियर का किला चारों ओर से विशाल तीर्थंकर-प्रतिमाओं से समन्वित है। तोमरवंशी राजाओं के राज्यकाल में निर्मित उन प्रतिमाओं से गोपाचल गढ़ पुण्यभूमि बन गया है। मालवा की भूमि में जैनत्व का खूब प्रचार-प्रसार हुआ था। अवन्ती और उज्जयिनी का उल्लेख जैन ग्रंथों में सम्मान के साथ मिलता है। परमार-वंश के नरेशों के समय में मालवा में स्थान-स्थान पर जिन-मंदिरों का निर्माण हुआ, जिनमें से कई तो आज तक विद्यमान हैं। भोजपुर के प्राचीन मंदिर में राजा भोज के राज्यकाल में निर्मित उत्तुंग प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं। भोपाल के ही निकट स्थित समसगढ़ के जैन मंदिरों में प्राचीन जैन-पुरातत्त्व सामग्री का विपुल संग्रह है। ऊन के जैन-मंदिरों का उल्लेख बहुधा किया जाता है। धारा नगरी की सुज्ञात सरस्वती की प्रतिमा को अनेक विद्वानों ने जैन सरस्वती का रूपांकन स्वीकार किया है। ___बुंदेलखण्ड के गाँव-गाँव में प्राचीन स्थापत्य के नमूने देखने को मिलते हैं। चन्देरी किसी समय जैन मूर्ति एवं स्थापत्य-कला का एक समृद्ध केन्द्र था। आज भी वह उतना ही महत्त्वपूर्ण है। बढ़ी चंदेरी के प्राचीन जिन-मंदिरों की बहुत-सी प्रतिमाएँ अब चन्देरी के शिल्प-मण्डप (स्कल्प्चर शेड) में लाकर जमा की गयी हैं। चन्देरी के निकटवर्ती गुहा मंदिरों में तेरहवीं शताब्दी की उत्तंग तीर्थंकर-प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हैं। उसी प्रदेश में थबौन तीर्थक्षेत्र है, जिसकी वंदना के लिए प्रतिवर्ष हजारों यात्री आते हैं। ___खजराहो धर्म-समवाय का एक विशिष्ट केन्द्र रहा है। वहाँ शैवों और वैष्णवों के मंदिरों के साथ जैन-मंदिरों का भी निर्माण किया गया था। उन मंदिरों में से कुछ देवालय आज भी विद्यमान हैं। शान्तिनाथ मंदिरों का अब प्राचीन रूप तो नहीं बचा पर उस मन्दिर में एकत्रित कला-सामग्री चन्देल-कालीन जैन-वैभव का परिचय दे सकने में समर्थ है। देवलिकाओं के गर्भ-गृह की बाह्य पट्टी पर जिन-माता के स्वप्नों का रूपांकन खजुराहो की विशेषता है। शान्तिनाथ मंदिर में ही क्षेत्रपाल की कायरूप प्रतिमा जैन प्रतिमा-विज्ञान के अध्ययन के लिए अत्यन्त उपयोगी है। खजुराहो के पार्श्वनाथ मंदिर की शिल्पकृतियों की उत्कृष्टता सभी कला-पारखियों ने एक स्वर में स्वीकार की है। आदिनाथ मंदिर में यक्ष-यक्षियों की विभिन्न २१४ तीर्थंकर | अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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