Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

View full book text
Previous | Next

Page 219
________________ ३२ परिच्छेद है, जिनमें प्रत्येक में साधारणतः एक ही छन्द का प्रयोग किया गया है। इसमें जैन नीति-शास्त्र के विभिन्न दृष्टिकोणों पर आपाततः विचार किया गया है, साथ-साथ ब्राह्मणों के विचार और आचार के प्रति इसकी प्रवृत्ति विसंवादात्मक है। प्रचलित रीति के ढंग पर स्त्रियों पर खूब आक्षेप किये गये हैं। एक पूरा परिच्छेद वेश्याओं के सम्बन्ध में है। जैनधर्म के आप्तों का वर्णन २८ वें परिच्छेद में किया गया है। ब्राह्मण धर्म के विषय में कहा गया है कि वे उक्त आप्तजनों की समानता नहीं कर सकते, क्योंकि वे स्त्रियों के पीछे कामातुर रहते हैं, मद्य सेवन करते हैं और इन्द्रियासक्त होते हैं। २. धर्मपरीक्षा बीस साल अनन्तर लिखा गया है । इसमें भी ब्राह्मण धर्म पर आक्षेप किये गये हैं और अधिक आख्यानमूलक साक्ष्य की सहायता ली गयी है। ३. पंचसंग्रह विक्रम संवत् १०७३ में मसूतिकापुर (वर्तमान मसूदाविलोदा) में जो धार के समीप है, लिखा गया था। ४. उपासकाचार, ५. आराधना सामयिक पाठ, ६. भावनाद्वात्रिंशतिका, ७. योगसार प्राकृत (जो उपलब्ध नहीं है )। ११. माणिक्यनंदी : धार के निवासी थे और वहाँ दर्शनशास्त्र का अध्ययन करते थे। इनकी एकमात्र रचना 'परीक्षामुख' नामक एक न्याय-सूत्र ग्रंथ है, जिसमें कुल २०७ सूत्र हैं। ये सूत्र सरल, सरस और गंभीर अर्थद्योतक हैं। १२. नयनंदी : ये माणिक्यनंदी के शिष्य थे। इनकी रचनाएँ हैं : १. 'सुदर्शन चरित्र' एक खण्डकाव्य है जो महाकाव्यों की श्रेणी में रखने योग्य है। २. सकल विहिविहाण एक विशाल काव्य है। इसकी प्रशस्ति में इतिहास की महत्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की गयी है। इसमें कवि ने ग्रंथ की रचना में प्रेरक हरिसिंह मुनि का उल्लेख करते हुए अपने से पूर्ववर्ती जैन-जैनेतर और कुछ समसामयिक विद्वानों का भी उल्लेख किया है। समसामयिकों में श्रीचन्द, प्रभाचन्द्र, श्री श्रीकुमार का उल्लेख किया है। राजा भोज तथा हरिसिंह के नामों के साथ बच्छराज और प्रभु ईश्वर का भी उल्लेख किया है। कवि ने वल्लभराज का भी उल्लेख किया है, जिसने दुर्लभ प्रतिमाओं का निर्माण कराया था। यह ग्रंथ इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्व का है। कवि के उक्त दोनों ग्रंथ अपभ्रंश भाषा में हैं। १३. प्रभाचन्द्र : माणिक्यनंदी के शिष्यों में प्रभाचन्द्र प्रमुख रहे। माणिक्यनंदी के ‘परीक्षामुख' नामक सूत्र ग्रंथ के कुशल टीकाकार थे। दर्शन-साहित्य के अतिरिक्त वे सिद्धान्त के भीविद्वान थे। आपको भोज के द्वारा प्रतिष्ठा मिली थी। इन्होंने कई विशाल दार्शनिक ग्रंथों के निर्माण के साथ-साथ अनेक ग्रंथों की रचना की। इनके ग्रंथ इस प्रकार हैं : १. प्रमेय कमलमार्तण्ड : एक दार्शनिक ग्रंथ है जो कि २२० तीर्थंकर ) अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230