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माणिक्यनंदी के 'परीक्षामुख' की टीका है। यह ग्रंथ राज भोज के राज्यकाल में लिखा गया, २. न्यायकुमुदचन्द्र : न्याय-विषयक ग्रन्थ है, ३. आराधना कथाकोश : गद्य ग्रंथ है, ४. पुष्पदंत के महापुराण पर टिप्पण, ५. समाधितंत्रटीका (ये सब राजा जयसिंह के राज्यकाल में लिखे गये ), ६. प्रवचन सरोजभास्कर, ७. पंचास्तिकायप्रदीप, ८. आत्मानुशासन तिलक, ९. क्रियाकलापटीका, १०. रत्नकरण्डटीका, ११. बृहत स्वयम्भू स्तोत्र टीका, १२. शब्दाम्भोज टीका। ये सब कब और किसके राज्यकाल में रचे गये कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है । इन्होंने देवनंदी की तत्वार्थवत्ति के विषम पदों का एवं विवरणात्मक टिप्पण लिखा है। इनका समय ११ वीं सदी का उत्तरार्ध एवं १२ वीं सदी का पूर्वार्ध ठहरता है।
इनके नाम से अष्टपाहुड़ पंजिका, मूलाचार टीका, आराधना टीका आदि ग्रंथों का भी उल्लेख मिलता है, जो उपलब्ध नहीं हैं।
१४. आशाधर : संस्कृत साहित्य के अपारदर्शी विद्वान् थे। ये मांडलगढ़ के मूल निवासी थे। मेवाड़ पर मुसलमान बादशाह शहाबुद्दीन गोरी के आक्रमणों से त्रस्त होकर मालवा की राजधानी धारा में अपनी स्वयं एवं परिवार की रक्षार्थ अन्य लोगों के साथ आकर बस गये। ये जाति के बघेरवाल थे। पिता सल्लक्षण एवं माता का नाम श्री रत्नी था। पत्नी सरस्वती से एक पुत्र छाहड़ हुआ। इनका जन्म वि. सं. १२३४-३५ के आसपास अनुमानित है। ये नालछा में ३५ वर्ष तक रहे
और उसे अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया। रचनाएँ : १. सागारधर्मामृत : सप्त व्यसनों के अतिचार का वर्णन। श्रावक की दिनचर्या और साधक की समाधि व्यवस्था आदि इसके वर्ण्य विषय हैं; २. प्रमेयरत्नाकर : स्याद्वाद विद्या की प्रतिष्ठापना, ३. भरतेश्वराभ्युदय : महाकाव्य में भरत के ऐश्वर्य का वर्णन है। इसे सिद्धचक्र भी कहते हैं क्योंकि इसके प्रत्येक सर्ग के अंत में सिद्धिपद आया है; ४. ज्ञानदीपिका, ५. राजमति विप्रलम्भ-खण्डकाव्य; ६. आध्यात्म रहस्य, ७. मूलाराधना टीका, ८. इष्टोपदेश टीका, ९. भूपाल चतुर्विशतिका टीका, १०. आराधनासार टीका, ११.अमरकोष टीका, १२.क्रियाकलाप, १३. काव्यालंकार टीका, १४. सहस्रनाम स्तवन सटीक, १५. जिनयज्ञ कल्प सटीक-यह प्रतिष्ठा सारोद्धार धर्मामृत का एक अंग है। १६. त्रिषष्टि स्मृतिशास्त्र सटीक; १७. नित्य महोद्योत-अभिषेकपाठ स्नान शास्त्र, १८. रत्नत्रय विधान, १९. अष्टांग हृदयीद्योतिनी टीका-वाग्भट्ट के आयुर्वेद ग्रंथ अष्टांग हृदयी की टीका, २०. धर्मामृत-मूल और २१. भव्य कुमुदचन्द्रिका (धर्मामृत पर लिखी गयी टीका )।
१५. श्रीचन्द : ये धारा के निवासी थे। लाड़ बागड़ संघ और बलात्कारगण के आचार्य थै । इनके ग्रंथ इस प्रकार हैं : १. रविषेण कृत पद्मरचित पर टिप्पण; २. पुराणसार; ३. पुष्पदंत के महापुराण पर टिप्पण ( उत्तरपुराण पर टिप्पण);
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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