________________ डाक-पंजीयन : इन्दौर डी. एन. नं. 62 (म. प्र.) आत्मार्थी : छिन्न-शोक, ममत्व-रहित, अभीत, और अविचलित भगवान महोत्रा ने कहा था 0 आत्मार्थी छिन्न शोक वाला, ममत्व-रहित और अकिचन धर्मवाला हो। 0 जैसे शरद् ऋतु का कुमुद जल में लिप्त नहीं होता, वैसे तू भी रागभाव छोड़कर निर्लिप्त बन। 0 अज्ञानी साधक उस जन्मान्ध व्यक्ति के समान है जो सछिद्र नौका पर चढ़कर नदी-किनारे पहुँचना तो चाहता है, किन्तु तट आ जाने से पहले ही प्रवाह में डूब जाता है / 0 अनन्त जीवन-प्रवाह में मनुष्य जीवन को बीच का एक सुअवसर जानकर धीर साधक मुहूर्त-भर के लिए भी प्रमाद नहीं करता। जो व्यक्ति संसार की तृष्णा से रहित है, उसके लिए कुछ भी कठिन नहीं है। 0 संकट में मन को ऊँचा-नीचा अर्थात् डांवाडोल नहीं होने देना चाहिये। 0 भय से डरना नहीं चाहिये / भयभीत मानव के पास भय शीघ्र आते हैं / आकस्मिक भय से, व्याधि से, रोग से, बढ़ापे से, और तो क्या मृत्यु से भी कभी डरना नहीं चाहिये। 0 जैसे उत्तम प्रकार की औषधि रोग को मल-से नष्ट कर देती है, उसे पुनः उभरने नहीं देती, वैसे ही जितेन्द्रिय पुरुष के चित को राग तथा विषय रूपी कोई शत्र विचलित और अशान्त नहीं कर सकता। श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी (राज द्वारा प्रचारित Jain Education International www.jainelibrary.org