Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 222
________________ १९. मेरुतुंगाचार्य : इन्होंने अपना प्रसिद्ध ऐतिहासिक सामग्री से परिपूर्ण ग्रन्थ प्रबन्धचिन्तामणि वि. सं. १९३१ में लिखा। इसमें पाँच सर्ग हैं। इसके अतिरिक्त विचारश्रेणी, स्थविरावली और महापुरुष चरित या उपदेशशती जिसमें ऋषभदेव, शांतिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और वर्धमान तीर्थंकरों के विषय में जानकारी है, की रचना की। २०. तारणस्वामी : तारण पंथ के प्रवर्तक आचार्य थे। इनका जन्म पुहुपावती नगरी में सन् १४४८ में हुआ था। पिता का नाम गढ़ा साव था। वे दिल्ली के बादशाह बहलोल लोदी के दरबार में किसी पद पर कार्य कर रहे थे। आपकी शिक्षा श्री श्रुतसागर मुनि के पास हुई। आपने कुल १४ ग्रंथों की रचना की, जो इस प्रकार हैं : १. श्रावकाचार, २. मालाजी, ३. पंडित पूजा, ४. कलम बत्तीसी, ५. न्याय समुच्चयसार, ६. उपदेशशुद्धचार, ७. त्रियंगीसार, ८. चौबीस ठाना, ९. नमल पाहु, १०. मुन्न स्वभाव, ११. सिद्ध स्वभाव, १२. रवात का विशेष, १३. छद्मस्थ वाणी और १४. नाममाला। २१. मंत्रिमण्डन : मंत्रीमण्डन झांझण का प्रपौत्र और बाहड़ का पुत्र था। यह चहुँमुखी प्रतिभावान था। मालवा के सुलतान होशंग गौरी का प्रधानमंत्री भी था। इसके द्वारा लिखे गये ग्रंथों का विवरण इस प्रकार है : १. काव्य मण्डन : इसमें पांडवों की कला का वर्णन है; २. शृंगार मण्डन : यह शृंगार रस का ग्रंथ है, इसमें १०८ श्लोक हैं; ३. सारस्वत मण्डन : यह सारस्वत व्याकरण पर लिखा गया ग्रंथ है, इसमें ३५०० श्लोक हैं; ४. कादम्बरी मण्डन : यह कादम्बरी का संक्षिप्तीकरण है, जो सुलतान को सुनाया गया था। इस ग्रंथ की रचना सं. १५०४ में हुई थी; ५. चम्पूमण्डन : यह ग्रंथ पांडव और द्रोपदी के कथानक पर आधारित जैन संस्करण है, रचना-तिथि सं. १५०४ है; ६. चन्द्रविजय प्रबन्ध : इस ग्रंथ की रचना-तिथि सं. १५०४ है। इसमें चन्द्रमा की कलाएं, सूर्य के साथ युद्ध और चन्द्रमा की विजय आदि का वर्णन है; ७. अलंकारमण्डन : यह साहित्य-शास्त्र का पांच परिच्छेद में लिखित ग्रंथ है। काव्य के लक्षण, भेद और रीति, काव्य के दोष और गुण, रस और अलंकार आदि का इसमें वर्णन है। इसकी रचना-तिथि भी संवत् १५०४ है; ८. उपसर्गमण्डन : यह व्याकरण रचना पर लिखित ग्रंथ है; ९. संगीतमण्डन : संगीत से सम्बन्धित ग्रंथ है; १०. कविकल्पद्रुमस्कन्ध : इस ग्रंथ का उल्लेख मण्डन के नाम से लिखे ग्रंथ के रूप में पाया जाता है। २२. धनदराज : यह मण्डन का चचेरा भाई था। इसने शलकत्रय (नीति, शृंगार और वैराग्य) की रचना की। नीतिशतक की प्रशस्ति से विदित होता है कि ये ग्रंथ उसने मंडपदुर्ग में सं. १४९० में लिखे। ____ अति विस्तार में न जाते हुए इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि मालवा में जैन सारस्वतों की कमी नहीं रही है। यदि अनुसंधान किया जाये तो जैन सारस्वतों और उनके ग्रंथों पर एक अच्छी संदर्भ पुस्तक लिखी जा सकती है। 00 मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक २२३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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