Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 215
________________ काल में निर्मित आरंग का जैन मंदिर आज भी दर्शनीय है। दक्षिण कोसल की प्राचीन राजधानी श्रीपुर (आधुनिक सिरपुर) में प्राप्त पार्श्वनाथ प्रतिमा रायपुर के संग्रहालय में प्रदर्शित है। नगपुरा (जिला दुर्ग) की पार्श्वनाथ प्रतिमा अति सुन्दर और आकर्षक है पर उपेक्षित दशा में पड़ी हुई है। मल्लार में ऊँची-ऊँची तीर्थंकर प्रतिमाएँ हैं। रत्नपुर की कुछ जिन-प्रतिमाएँ रायपुर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं पर शेष वहीं ग्राम में यत्र-तत्र पड़ी हुई हैं। आवश्यकता इस बात की है कि तमाम जैनसामग्री का व्यवस्थित सर्वेक्षण और उनकी सुरक्षा का उचित प्रबन्ध किया जाए। ___ मध्यप्रदेश कई सांस्कृतिक भूखण्डों का एक मिला-जुला प्रदेश है। यहाँ प्राचीन काल में भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न राजवंशों ने राज्य किया था, इसलिए मध्यप्रदेश की कला में स्थानीय वैशिष्ट्य के दर्शन होते हैं। दुःख यदि ना पावे तो दुःख यदि ना पाबे तो दुःख तोमार घुचबे कबे ? ___ विषके विषेर दाह दिये दहन करे मारते हबे ।। ज्वलते दे तोर आगुन टारे, भय किछु ना करिस तोर, छाई हये से निभबे जरवन ज्वलबे ना आरकभे तबु ।। -रवीन्द्रनाथ दुःख पायेगा नहीं, तो दुःख तेरा जायेगा कैसे ? मारना होगा विष को विष की ज्वाला से दग्ध करके । ज्वाला दुःख की भड़कती है, तो भड़कने दे, उसका क्या भय ; राख होकर ठण्डी पड़ जाएगी वह, और फिर कभी नहीं भड़केगी। २१६ तीर्थंकर | अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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