Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 216
________________ प्राचीन मालवा के जैन सारस्वत और उनकी रचनाएं मालवा में जैन सारस्वतों की कमी नहीं रही है । यदि अनुसंधान किया जाए तो जैन सारस्वतों और उनके ग्रन्थों पर एक अच्छी सन्दर्भ-पुस्तक लिखी जा सकती है। -डा. तेजसिंह गौड़ मालवा भारतीय इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। साहित्य के सम्बन्ध में भी यह पिछड़ा हुआ नहीं रहा है। कालिदास-जैसे कवि इस भूखण्ड की ही देन हैं। प्राचीन मालवा में जैन विद्वानों की भी कमी नहीं रही है। प्रस्तुत निबन्ध में मालवा से सम्बन्धित जैन विद्वानों के संक्षिप्त परिचय के साथ उनकी कृतियों का भी परिचय देने का प्रयास किया गया है। इनके सम्बन्ध में सामग्री जहाँ-तहाँ बिखरी पड़ी है। तथा आज भी जैनधर्म से सम्बन्धित कई ग्रंथ ऐसे हैं जो प्रकाश में नहीं आये हैं, फिर भी उपलब्ध जानकारी के अनुसार जैन सारस्वत और उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं : १. आचार्य भद्रबाहु : आचार्य भद्रबाहु के विषय में अधिकांश व्यक्ति जानकारी रखते हैं। ये भगवान् महावीर के पश्चात् छटवें थेर माने जाते हैं। इनके ग्रंथ "दसाउ" और "रस निज्जुत्ति” के अतिरिक्त कल्पसूत्र का जैनधार्मिक साहित्य में बहुत महत्त्व है। २. क्षपणक : ये विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। इनके रचे हुए न्यायावतार दर्शनशुद्धि, सन्मतितर्कसूत्र और प्रमेयरत्नकोष नामक चार ग्रंथ प्रसिद्ध हैं । इनमें न्यायावतार ग्रंथ अपूर्व हैं। यह अत्यन्त लघु ग्रंथ है; किन्तु इसे देखकर 'गागर में सागर' की कहावत याद आ जाती है। ३२ श्लोकों में इस काव्य में क्षपणक ने सारा जैन न्यायशास्त्र भर दिया है। न्यायावतार पर चन्द्रप्रभ सूरि ने 'न्यायावतार निवृत्ति' नामक विशद टीका लिखी है। ३. आर्यरक्षित सूरि : आपका जन्म मन्दसौर में हुआ था। पिता का नाम सोमदेव तथा माता का नाम रुद्रसोमा था। लघु भ्राता का नाम फल्गुरक्षित था, जो स्वयं भी आर्यरक्षित सूरि के कहने से जैन साधु हो गया था। पिता सोमदेव स्वयं एक अच्छे मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक २१७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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