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आपका शुक्र उन्नत है, ठीक वैसा ही जैसा श्री जवाहरलाल नेहरू के हस्ततल में था, अतः आप अपनी वास्तविक वय के अनुपात में अधिक युवा और उल्लसित दिखायी देंगे । आपमें मानसिक और कायिक ऊर्जा अदम्य और अद्वितीय है, अत: आप सब तरह के उपसर्ग, दबाव
और श्रान्तियों के प्रति अपरम्पार सहिष्णुता और धैर्य बनाये रख सकेंगे । आपके पदतल में 'पद्मरेखा' है, जिसका अर्थ है सर्वोच्च कोटि का राजयोग, विश्व-भ्रमण, अपार ख्याति
और नाम । गुरु, बुध और शुक्र के कारण आपकी वाणी स्वर्णाभ और सम्मोहक रहेगी; इसीलिए अन्तहीन जनमेदिनी को सम्मोहित तथा मन्त्रमुग्ध रखने में आपको बेजोड़ सफलता प्राप्त होगी। प्रत्येक मास की भाग्यशाली तिथियाँ हैं : ७, १४, २३ और २५; प्रतिवर्ष के भाग्यशाली माह है : जनवरी, अप्रैल, मई, जून, जुलाई, सितम्बर और नवम्बर । सामुद्रिक तथ्यों के अनुसार आपको अन्तर्राष्ट्रीय कोटि की प्रसिद्धि प्राप्त होगी। ७ जुलाई १९६५ से १९७५ तक आपके जीवन में कई महत्वपूर्ण अध्याय खुलेंगे । जीवन के ३४, ३७ और ४१वें वर्ष अधिक महत्त्वपूर्ण साबित होंगे । २५वें और २७वें वर्ष भी महत्त्वपूर्ण और स्मरणीय थे; इन्हें इसलिए महत्त्व का कहा जाएगा क्योंकि क्रमिक परिवर्तन, अर्थात् आध्यात्मिक उपलब्धियों और अभिनिष्क्रमण की दृष्टि से इनका महत्त्व है। इन्हीं वर्षों में भवितव्य की भूमिका का निर्माण हुआ। आपके शत्र और प्रतिद्वंद्वी सदैव परास्त और समर्पित होते रहे हैं, होते रहेंगे तथा लोकहृदय सदैव आपकी उपासना और सम्मान करता रहेगा। ४३, ४५, ४७ और ५२वें वर्ष आपके जीवन के अत्यन्त सौभाग्यशाली वर्ष सिद्ध होंगे । आप जैसे-जैसे जीवन के उत्तरार्द्ध का आरोहण शुरू करेंगे, ऊंचाइयाँ स्वतः प्रकट होती जाएंगी। मूंगा और पन्ना आपके मांगलिक नग हैं। सोमवार का उपवास आपके लिए आवश्यक है । केशरिया (जाफरान) आपके लिए भाग्यशाली रंग है। आपकी हस्तपगांगुलियों में 'शंख' चिह्नित हैं, जो विश्व-विख्यात आध्यात्मिक जीवन की ख्याति के प्रबल राजयोग के प्रतीक हैं । बुध अत्यन्त उन्नत स्थिति में है।
-बाबू मेहरा, दिल्ली
हम बीतते हैं समय नहीं बीतता, सिर्फ हम बीतते हैं; हम आते हैं, जाते हैं, होते हैं, नहीं हो जाते हैं । समय अपनी जगह है। समय नहीं बीतता है लेकिन लगता है कि समय बीत रहा है ; इसलिए हमने घड़ियाँ बनायी हैं जो बताती हैं कि समय बीत रहा है । सौभाग्य होगा वह दिन जिस दिन हम घड़ियाँ बना लेंगे जो हमारी कलाइयों में बंधी हुई बता देंगी कि हम बीत रहे हैं।
-रजनीश
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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