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माना कि सुन्दर होता है निराकार से आकार मगर हर इंच पर उसे फूल की तरह न खिलायें छोड़ दिये जाएँ खाली लम्बे-चौड़े मैदान ध्वनि और शब्द और गान रहें मगर ऐसे भी कान रहें जो चुप्पी को सुन लें
-जैनधर्म खण्ड
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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