Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 174
________________ जैन दर्शन की सहज उद्भूति : अनेकान्त 0 क्या हम वस्तु के एक धर्म को भी ठीक से देख पाते हैं ? मैं समझता हूँ नहीं देख पाते। 0 सम्पत्ति का संग्रह हिंसक कार्य तो है ही, वह एकान्त और अस्याद्वादी कार्य भी है । जब हम अपने लिए संग्रह करते है तो दूसरों की सापेक्षता में सोचते ही नहीं हैं। ० परिग्रह हजार सूक्ष्म पैरों से चलकर हमारे पास आता है और हम गफलत में पकड़ लिये जाते हैं। --जयकुमार जलज - अनेकान्त जैन दर्शन की सहज उद्भूति है । जैन दार्शनिकों ने द्रव्य पदार्थ सत्ता या वस्तु का जैसा विवेचन किया है उससे उन्हें अनेकान्त तक पहुँचना ही था । उनका द्रव्य-विवेचन एक अत्यन्त तटस्थ वैज्ञानिक विवेचन है । परवर्ती शुद्ध विज्ञानों से दूर तक उसका समर्थन होता है । जैन दर्शन के अनुसार द्रव्य के अनेक (अनन्त नहीं) गुण हैं-- जैसे जीव द्रव्य के ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्य आदि और पुद्गल द्रव्य के रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि । वस्तु या द्रव्य आकार में कितना ही छोटा हो लेकिन हम उसे सम्पूर्णतः नहीं देख सकते । मैं उसके एक गुण को देखता हूँ, आप दूसरे गुण को, और लोग तीसरे, चौथे गुण को भी देख सकते हैं; लेकिन एक व्यक्ति युगपत् सभी गुणों को देखने में समर्थ नहीं है । सबके देखे हुए का योग नहीं किया जा सकता और योग हो भी जाए तो भी वह सभी दर्शकों के लिए विश्वसनीय कहाँ हो पायेगा? कई खण्ड ज्ञान मिल कर एक अखण्ड ज्ञान की प्रामाणिक प्रतीति शायद ही करा पायें । जगह-जगह टूटी हुई रेखा एक अटूट रेखा का भ्रम ही पैदा कर सकती है; वह वस्तुतः अटूट रेखा नहीं होती। इस प्रकार वस्तु अधिकांशतः अदेखी रह जाती है । ___ वस्तु के गुण परिवर्तनशील हैं । गुणों का परिवर्तन ही वस्तु का परिवर्तन है । इसीलिए वस्तु कोई स्थिर सत्ता नहीं है । वह उत्पाद और व्यय के वशीभूत है । हर क्षण उसमें कुछ नया उत्पन्न होता है और कुछ पुराना क्षय होता है । वह अपनी पर्यायें बदलती है-पूर्व पर्याय त्यागती है और उत्तर पर्याय को प्राप्त करती है । यह क्रम अनादि अनन्त और शाश्वत है। यह कभी विच्छिन्न नहीं होता। हम पहले क्षण जिस वस्तु को देखते हैं और दूसरे क्षण वही वस्तु नहीं होती । नदी के किनारे पर खड़े होकर हम एक ही नदी को नहीं देखते । हर क्षण दूसरी नदी होती है । मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक १७५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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