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इसी युग में अन्य भी बहुत से कवि हो गये हैं जिनके द्वारा कर्नाटक- साहित्यसंसार समृद्ध हुआ है।
ज्योतिष शास्त्र के प्रणेता श्रीधराचार्य
इनका समय ११ वीं शताब्दी का मध्य था । इन्होंने ज्योतिष संबंधी 'जातक तिळक' नामक ग्रंथ की रचना की है, जिसमें जातक ( जन्मपत्र ) संबंधी सूक्ष्म विचार किया गया है ।
दिवाकर नंदी
ये करीब ई. १०६१ में हुए, इन्होंने भगवान् उमास्वामी - विरचित तत्त्वार्थ सूत्र पर कन्नड तात्पर्यवृत्ति लिखी है, जो अत्यन्त मनोज्ञ है ।
कवि शांतिनाथ
इनका समय करीब १०६८ ई. है । इन्होंने कन्नड में सुकुमार चरित्र की रचना की है । ये अत्यन्त प्रौढ़ कवि थे, इनको अनेक सम्माननीय उपाधियाँ प्राप्त थीं 1
अभिनव पंप नागचन्द्र
करीब १२ वें शतमान के आदि में नागचन्द्र नामक महान् विद्वान् हुआ, जिसने पद्मचरित या रामकथा - चरित की रचना की है । इस रामायण को पंप रामायण भी कहते हैं । वस्तुत: यह रामायण महाकवि पंप - विरचित नहीं है; परन्तु यह कवि अभिनव पंप के नाम से प्रसिद्ध था, अतः वह रामायण भी पंपरामायण नाम से प्रसिद्ध हुई । इस उदात्त कवि ने विजयपुर में एक मल्लिनाथ जिन-मंदिर का निर्माण कराया, जिसकी स्मृति में उसने मल्लिनाथ पुराण की रचना की । यह भी पठनीय है।
afafrat कन्ति
इसी युग में कान्ति नाम की एक कवियित्री हुई है । इसके द्वारा विरचित अनेक ग्रंथ की उपलब्ध नहीं है तथापि 'कंति पंप की समस्याएँ' इस नाम से प्रश्नोत्तर रूप से समस्या-पूर्ति रूप काव्य मिलता है, जिसे देखने पर मालूम होता है कि यह प्रौढ कवियित्री थी ।
नमसेन
करीब बारहवें शतमान के आदि में कर्नाटक भाषा के चंपूकाव्य में बहुत बड़ी रचना इसने की है | धर्मामृत इसकी रचना है । पदलालित्य, दृष्टांत प्रचुरता, विनोद विशेष इसके काव्य की विशेषता है । १४ आश्वासों से युक्त इस ग्रंथ में अष्टांग
तीर्थंकर / अप्रैल १९७४
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