Book Title: Tirthankar 1974 04
Author(s): Nemichand Jain
Publisher: Hira Bhaiyya Prakashan Indore

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Page 205
________________ स पूज्यः कविभिलॊके कवीनां परमेश्वरः वागर्थ संग्रहं कृत्स्नं पुराणं यः समग्रहीत् ॥ -पूर्वपुराण प्र. अ. ६०. शब्दार्थ-संग्रह से युक्त चतुर्विशति तीर्थंकर पुराण को जिन्होंने अपनी विद्वत्ता से संग्रह किया ऐसे कविपरमेष्ठी लोक में कवियों के द्वारा पूज्य हैं। इसी प्रकार आचार्य गुणभद्र ने भी कवि परमेष्ठी की प्रशंसा इस प्रकार की है कविपरमेश्वर निगदित गद्यकथा मात्रकं पुरोश्चरितं सकल छंदोलंकृतिवक्ष्यं सूक्ष्मार्थ गूढपदरचनम् ॥ अर्थात् आचार्य जिनसेन व गुणभद्र के सामने कविपरमेष्टी द्वारा रचित त्रिषष्टिशलाका पुरुषों का चरित्र गद्यकाव्य में अवश्य होगा; अर्थात् यह कविपरमेष्ठी उनसे कितने प्राचीन हैं यह निश्चित नहीं कहा जा सकता है। फिर भी हम पंप-युग से कर्नाटक-साहित्य की निश्चित भूमिका को व्यक्त कर सकते हैं; अतः उस महाकवि के काल से ही कर्नाटक काव्य-सृष्टि का हम यहाँ दिग्दर्शन करायेंगे। पंप महाकवि कर्नाटक-साहित्य पंप महाकवि के आदिकाव्य से समृद्ध हुआ है। कर्नाटक-साहित्य का नाम लेने पर पंप का, पंप का नाम लेने पर कर्नाटक-साहित्य का स्मरण हो जाता है। पंप ने गद्यपद्यपथ चंपूकाव्य से ही अपनी काव्य-सृष्टि का श्रीगणेश किया है। पंप का समय ९४१ ई. माना जाता है। इसने एक धार्मिक व दूसरा लौकिक ऐसे दो काव्यों की रचना की है। जिनके नाम हैं-- 'आदिपुराण' और 'पंप भारत'। ये दोनों अजोड़ चंपूकाव्य हैं। इसके पूर्वज वैदिक धर्मावलंबी थे, परंतु इसके पिता अभिराम देव ने जैनधर्म से प्रभावित होकर जैनधर्म को ग्रहण किया; इसलिए पंप के जीवन में जैनधर्म के ही संस्कार रहे। 'आदिपुराण' की कथावस्तु भगवज्जिनसेनाचार्य के महापुराणांतर्गत आदिजिनेश-चरित है तथापि इसकी शैली स्वतंत्र है। संस्कृत महापुराण के समान ही इसमें भी यत्र-तत्र प्रसंगोपात्त धर्म का भी विवेचन है। भोग व योग का सामंजस्य साधते हुए ग्रंथकार ने सर्वत्र भोग-त्याग का ही संकेत किया है। दूसरा ग्रंथ पंप चरित या पंप भारत है। विषय भारत है। अपने समय के प्रसिद्ध राजा अरिकेसरी को अर्जुन के स्थान पर रखकर उसकी प्रशंसा की है। कर्नाटक में यह आद्यकवि माना जाता है। जैन व जैनेतर विद्वानों में इसके काव्यों के प्रति परमादर २०६ तीर्थंकर | अप्रैल १९७४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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