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आये तुम........ धरती के चेहरे पर पीड़ा के साये
..."तुम आये रीत रहे तालों-सा अंदेशा, लाये तुम प्यासों को संदेशा, ___ घर-बाहर, मेघदूत बनकर घहराये
सूखीं जो छाती थीं माओं की, काठी खट गयीं थीं पिताओं की,
मृगतृष्णा के पठार तोड़ छितराये
ठीक सामने से हर वार सहा, बिना जिये अक्षर भी नहीं कहा, मानव की क्या बिसात देवता लजाये.
आये........."तुम आये.
आज अपने सामने
जो कर गया हमको खड़ा,
कुछ अधिक था आदमी से, मूर्तिमय विश्वास था,
आँख वालों के लिए वह समूचा मधुमास था भीतरी औ' बाहरी
दो मोर्चों पर वह लड़ा
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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