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भगवान् महावीर का सन्देश और
आधुनिक जीवन - संदर्भ
भगवान् महावीर ने जिस जीवन-दर्शन को प्रतिपादित किया है, वह आज के मानव की मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक दोनों तरह की समस्याओं का अहिंसात्मक समाधान है ।
डा. महावीर सरन जैन
भगवान् महावीर के युग में भौतिकवादी एवं संशयमूलक जीवन-दर्शन के मतानुयायी चिन्तकों ने समस्त धार्मिक मान्यताओं, चिरसंचित आस्था एवं विश्वास के प्रति प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया था। पूरण कस्सप, मक्खलि गोसाल, अजितकेसकम्बलि, पकुध कच्चायन, संजय बेलट्ठिपुत्र आदि के विचारों को पढ़ने पर आभास हो जाता है कि उस युग के जनमानस को संशय, त्रास, अविश्वास, अनास्था, प्रश्नाकुलता आदि वृत्तियों ने किस सीमा तक जकड़ लिया था । ये चिन्तक जीवन में नैतिक एवं आचारमूलक सिद्धांतों की अवहेलना करने एवं उनका तिरस्कार करने पर बल दे रहे थे। मानवीय सौहार्द एवं कर्मवाद के स्थान पर घोर भोगवादी, अक्रियावादी एवं उच्छेदवादी वृत्तियाँ पनप रही थीं ।
इन्हीं परिस्थितियों में भगवान् महावीर ने प्राणिमात्र के कल्याण के लिए, अपने ही प्रयत्नों द्वारा उच्चतम विकास कर सकने का आस्थापूर्ण मार्ग प्रशस्त कर, अनेकान्तवादी जीवन-दृष्टि पर आधारित, स्याद्वादवादी कथन - प्रणाली द्वारा बहुधर्मी वस्तु को प्रत्येक कोण, दृष्टि एवं संभावना द्वारा उसके वास्तविक रूप में जान पाने का मार्ग बतलाकर सामाजिक जीवन की शान्ति के लिए अपरिग्रहवाद एवं अहिंसावाद का संदेश दिया ।
आज भी भौतिक विज्ञान की चरम उन्नति मानवीय चेतना को जिस स्तर पर ले गयी है वहाँ उसने हमारी समस्त मान्यताओं के सामने प्रश्नवाचक चिह्न लगा दिया है । समाज में परस्पर घृणा एवं अविश्वास तथा व्यक्तिगत जीवन में मानसिक तनाव एवं अशान्ति के कारण विचित्र स्थिति उत्पन्न होती जा रही है । आत्मग्लानि, व्यक्तिवादी आत्मविद्रोह, अराजकता, आर्थिक अनिश्चयात्मकता, हड़ताल और घेराव तथा जीवन की लक्ष्यहीन समाप्ति की प्रवृत्तियाँ बढ़ती जा रही हैं ।
तीर्थंकर | अप्रैल १९७४
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