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शांकर वेदान्त में केवल ब्रह्म को सत्य माना गया तथा जगत् को स्वप्न एवं मायारचित गन्धर्व नगर के समान पूर्णतया मिथ्या एवं असत्य घोषित किया गया। इस दर्शन के कारण आध्यात्मिक साधकों के लिए जगत की सत्ता ही असत्य एवं मिथ्या हो गयी। परिणाम यह हुआ कि दार्शनिकों का सारा ध्यान ‘परब्रह्म'प्राप्ति में ही लगा रहा और इस प्रकार दर्शन के धरातल पर तो 'अद्वैतवाद' की स्थापना होती रही; किन्तु दूसरी ओर समाज के धरातल पर 'समाज के हितैषियों' ने उसे साग्रह वर्णों, जातियों, उपजातियों में बाँट दिया। एक परब्रह्म द्वारा बनाये जाने पर भी जन्मना' ही आदमी और आदमी के बीच तरह-तरह की दीवारें खड़ी कर दी गयीं।
जात-पाँत एवं ऊँच-नीच की भेद-भावना के विकास में मध्ययुगीन राजतन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था एवं धार्मिक आडम्बरों का बहुत योग रहा। इस युग में राजागण सांसारिक सुखों की प्राप्ति के लिए 'शरीर' को अमर बना रहे थे और देव-मन्दिर सुरति-क्रिया-रत स्त्री-पुरुषों के चित्रों से सज्जित हो रहे थे।
__इस्लाम के आगमन के पश्चात् भक्ति का विकास हुआ। आरम्भ में इसका स्वरूप सात्विक तथा लक्ष्य मनुष्य की वतियों का उदात्तीकरण रहा; किन्तु मधुरा भाव एवं परकीया प्रेमवाद में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से सामन्तीकरण की वृत्तियाँ आ गयीं। राजतन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था एवं भक्ति का विकास लगभग समान आयामों में हुआ।
'भक्ति' में भक्त भगवान का अनग्रह प्राप्त करना चाहता है तथा यह मानकर चलता है कि बिना उसके अनुग्रह के कल्याण नहीं हो सकता। राजन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था में भी दरबारदारी 'राजा' का अनुग्रह प्राप्त करना चाहते हैं; उसकी कृपा पर ही राजाश्रय निर्भर करता है। इस प्रकार मध्ययुगीन धार्मिक आडम्बरों का प्रभाव राजदरबारों पर पड़ा तथा राजतन्त्रात्मक विलास का प्रभाव देव-मन्दिरों पर। राजतन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था में समाज में व्यक्ति की स्वतन्त्रता एवं समता की भावना नहीं होती; राजा को इच्छानुसार सम्पूर्ण व्यवस्था परिचालित होती है; भक्तिसिद्धान्त में भी साधक साधना के ही बल पर मुक्ति का अधिकार प्राप्त नहीं कर पाता, उसके लिए भगवत्कृपा होना जरूरी है।
इन्हीं 'राजतन्त्रात्मक' एवं धार्मिक व्यवस्थाओं के कारण सामाजिक समता की भावना निर्मूल होती गयी।
आज स्थितियाँ बदल गयी हैं। प्रजातन्त्रात्मक शासन-व्यवस्था में प्रत्येक व्यक्ति को समान संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं। परिवर्तित युग में समयानुकूल धर्म
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तीर्थंकर | अप्रैल १९७४
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