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शास्त्र पढ़कर ही यदि कोई सत्य को जान ले तो सत्य बड़ी सस्ती बात हो जाएगी; फिर तो शास्त्र की जितनी कीमत है उतनी ही कीमत सत्य की भी हो जाएगी। शास्त्र पढ़कर सत्य जाना नहीं जा सकता है, सिर्फ पहिचाना जा सकता है।
-रजनीश
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तीर्थंकर | अप्रैल १९७४
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