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मैं किसी बन्धन में नहीं बंधता।
मालवा का आग्रह वे टाल नहीं सके।
प्रवर स्व. चैनसुखदासजी से यहीं उनकी भेंट हुई । लगा जैसे दो ज्वालामुखी एक साथ मिले हों। पंडितजी की प्रार्थना पर मुनिश्री ने निश्चय किया कि धर्म को मंदिरों की चहरदीवारी से बाहर लाया जाए और उसे जन-जन तक पहुँचाया जाए। इसी तारतम्य में उन्होंने सामाजिक दुराग्रहों और मतभेदों को चुनौती दी और कुछ लोकमंगलकारी कदम उठाये । इस तरह धर्म को सामाजिक प्रबुद्धता की दिशा में मोड़कर एक नयी ही सामाजिक चेतना को जगाया और महावीर की जनवादी परम्परा को पुनः लोकमन से जोड़ा।
जयपुर से उनकी धवलकीति आगे बढ़ी। मेरे हृदय में उनके प्रति अपार श्रद्धा तब उमगी जब मैंने सुना कि इस दिगम्बर महामुनि ने मुलतान पाकिस्तान से राजस्थान आये हुए जैन भाइयों को उनके बीच पहुंचकर दूध में शक्कर की भाँति एक मेक कर लिया। बात यह थी कि पाकिस्तान से आये जैन भाइयों को लेकर जयपुर समाज में एक विवाद खड़ा हुआ जिसने आगत भाइयों को इस दुविधा में डाल दिया कि या तो वे
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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