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___ महाराजश्री की प्रेरणा से इस संस्था ने देश के चार जैन-अजैन विद्वानों को पच्चीस सौ रुपये की नकद धनराशि एवं एक स्वर्णपदक प्रदान किया। इन्हें इतिहास-रत्न विद्यावारिधि-जैसी उपाधियों से अलंकृत भी किया गया। उसमें प्रथम पुरस्कार पटना विश्वविद्यालय के डा. योगेन्द्र मिश्र को उनकी पुस्तक 'एन अर्जी हिस्ट्री आफ वैशाली' पर; दूसरा प्रसिद्ध इतिहासकार डा. ज्योतिप्रसाद जैन लखनऊ, तीसरा डा. पी. सी. राय चौधरी पटना को उनकी पुस्तक 'जैनिज्म इन बिहार' पर तथा चौथा पंडित बालचन्द जैन को 'धवल जयधवल' आदि महान् ग्रन्थों की टीका करने के उपलक्ष्य में प्रदान किया गया। यह प्रथम अवसर है कि जैन समाज द्वारा विद्वानों को इस प्रकार पुरस्कृत किया गया है। यह महान कार्य महाराजश्री के प्रेरणा का ही प्रतिफल है। महाराजश्री ने भगवान् महावीर के २५०० वें परिनिर्वाण-महोत्सव के उपलक्ष्य में लगभग पचास जैन-अजैन विद्वानों को पुरस्कृत कराने की योजना बनायी है।
देश के विभिन्न प्रदेशों के प्रसिद्ध उद्योगपति एवं समाज के प्रतिष्ठा-पुरुष भी महाराजश्री के दर्शनार्थ आते रहते थे। जिसमें अधिकतम भगवान् महावीर के पच्चीस सौ वें परिनिर्वाण-महोत्सव पर महाराजश्री से परामर्श करने व आदेश प्राप्त करने आते थे। इनमें प्रमुख थे प्रसिद्ध उद्योगपति श्री साहू शान्तिप्रसाद देहली, सेठ राजकुमारसिंह इन्दौर, सेट हीरालाल इन्दौर, सर सेठ भागचन्द सोनी अजमेर, सेठ लालचन्द (फिएट कार के निर्माता) बम्बई, साहू श्रेयांसप्रसाद बम्बई, श्री कन्हैयालाल सरावगी पटना व भूतपूर्व विधायक श्री बाबूलाल पाटौदी इन्दौर आदि ।
महाराजश्री के दर्शानार्थ कभी-कभी कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री एवं संसद्-सदस्य एवं विधायक भी पधारते रहते थे । उनमें प्रमुख थे श्री प्रकाशचन्द्र सेटी (मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश); चौधरी श्री चरणसिंह (भूतपूर्व मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश); श्री चन्द्रभान गुप्त (भूतपूर्व मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश); श्री मिश्रीलाल गंगवाल (भूतपूर्व मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश); श्री निरंजननाथ आचार्य (भतपूर्व स्पीकर राजस्थान); श्री रामचन्द्र 'विकल' संसद् -सदस्य आदि ।
दिगम्बर मुनि की आहार-चर्या मुद्रा जिसे मुनिश्री विद्यानन्दजी
ने अपने इन्दौर-वर्षायोग के समय किसी विचार-विमर्श के संदर्भ में स्वयं चित्रित किया था।
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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