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गिरा। महाराजश्री के रुके और उन्होंने अपनी मन्द-मन्द मुस्कान से उनकी और देखा । वह बोला आपने मुझ पर बड़ा भारी उपकार किया है। मैं जाति का ब्राह्मण हूँ। जब आप पहली बार मेरठ आये थे, एक दिन मैं आपका प्रवचन सुनने गया। आपके प्रवचन का मुझ पर बड़ा प्रभाव पड़ा। मैं प्रतिदिन शराब पीता था। किन्तु मैंने उसी दिन से शराब न पीने का संकल्प कर लिया, जिसे मैं आज तक निभा रहा हूँ। महाराजश्री ने करुणापूर्ण दृष्टि से उसे निहारा और अपनी कोमल पिच्छी आशीर्वाद के रूप में उसके झुके हुए मस्तक पर रख दी। वह भी श्रद्धा से बार-बार महाराजश्री के चरणों में और झुक गया। ऐसा है महाराजश्री का प्रभाव !
मुनिश्री के मुख पर प्रति समय खेलने वाली मन्द-मन्द मुस्कान एवं उनकी मधुर वाणी का नयी पीढ़ी पर बड़ा अनुकूल प्रभाव पड़ता है। उन्होंने शिक्षित युवक एवं युवतियों को अपनी ओर आकर्षित किया, उनके बिना किसी पूर्वाग्रह के आहार ग्रहण किया और उनकी भावनाओं को परिष्कृत कर उनका आदर किया।
इस प्रकार हम देखते थे कि महाराजश्री के पास नवयुवकों की भीड़ सदैव लगी रहती थी। उन नवयुवकों ने धर्म और चरित्र का मूल्य समझा । महाराजश्री ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया । बरी संगत में पड़कर जो कुसंस्कार उनमें घर कर गये थे उनसे छुटकारा दिलाने का प्रयास किया और जिसमें उन्हें कल्पनातीत सफलता प्राप्त हुई । आज के दूषित वातावरण में पल रही इस नयी पीढ़ी को जो प्रायः धर्म से पराङमुख हो रही है। मुनिश्री ने चरित्र-निर्माण की प्रेरणा दी। महाराजश्री ने अनुभव किया था कि आज नयी पीढ़ी में सिनेमा के भड़कीले संगीत की ओर रुचि बढ़ रही है। उन्होंने इस रुचि को नया मोड़ दिया और प्राचीन जैन कवियों के सुन्दर भजनों एवं गीतों का संकलन करवाया। एक "श्रमण जैन भजन-प्रचारक संघ" नामक संस्था का निर्माण कर उन प्राचीन कवियों के सुन्दर सार्थक पदों के रिकार्ड तैयार कराये तथा इस ओर नयी पीढ़ी की रुचि पैदा की। उनकी प्रेरणा से ही घरघर में आज धार्मिक संगीत सुनायी देने लगा है। आज जैनधर्म के रिकार्ड भारत के
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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