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की निष्ठा महाराजश्री के प्रति अटूट रही। वे महाराजश्री के प्रवचनों को प्रतिदिन अपने पत्रों में छापते थे। उन्होंने माहाराजश्री के विषय में कितने ही लेख लिखे और महाराजश्री के द्वारा लिखी कितनी ही पुस्तकों का उन्होंने संपादन किया। जब महाराजश्री बदरीनाथ की यात्रा के लिए हिमालय की ओर चले, तब इस यात्रा में उनका काफी योगदान रहा। वे आजन्म महाराजश्री के पूर्ण भक्त और उनके प्रति पूर्ण निष्ठावान रहे।
श्री कालीचरण पौराणिक कट्टर कर्मकांडी ब्राह्मण हैं। वे मेरट सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष हैं और शहर में सभी उनका बड़ा सम्मान करते हैं वे महाराजश्री के वर्षायोग में उनके सम्पर्क में आये वे प्रायः प्रतिदिन प्रवचनों में आते थे। महाराजश्री के द्वारा भगवान् राम पर प्रभावशाली भाषण सुनकर वे गद्गद् हो गये। पौराणिकजी ने महाराजश्री विद्वत्ता एवं चारित्र्य की भूरि-भूरि प्रशंसा की और एक दिन अपने भाषण में स्पष्ट कहा कि मैंने अपने समस्त जीवन में मुनिश्री विद्यानन्दजी से बढ़कर कोई ऋषि या मुनि नहीं देखा। जितने दिन माहाराजश्री मेरठ में रहे पौराणिकजी प्रायः प्रतिदिन उनके प्रवचनों में आते रहे। वे महाराजश्री से धार्मिक चर्चाएँ और शंकाओं का समाधान करते रहे । महाराजश्री का प्रभाव उन पर इतना पड़ा कि उनकी विदाई पर भाषण करते-करते उनका हृदय भर आया और तीन मील पैदल चलकर महाराजश्री को शहर की सीमा तक छोड़ने आये।
मेरठ में रहते हुए महाराजश्री ने अनेक जैन-अजैन विद्वान् जो भी उनके सम्पर्क में आये उन्हें अपनी विदग्ध वाणी द्वारा प्रभावित किया; जो अजैन लोग दिगम्बर मुनि को देखकर मुख फेर लिया करते थे वे आज दिगम्बर मुनि को श्रद्धा से नत-मस्तक अपनी श्रादरांजलि अर्पित करते हैं ।
१९७३ के वर्षायोग में एक दिन महाराजश्री भैसाली ग्राउण्ड से प्रवचन करके शहर की धर्मशाला लौट रहे थे तो रास्ते में एक भीमकाय पुरुष उनके चरणों में आ
तीर्थंकर | अप्रैल १९७४
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