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प्रस्तावना अथवा भूमिका के रूप में पहले राजपूत कालेज, आगरा के प्राध्यापक श्री जयकिशनप्रसाद खण्डेवाल का संक्षिप्त प्रवचन हुआ और फिर एक भजन ; तदुपरान्त मुनिश्री प्रवचन करने लगे। मनीषी मुनिवर श्रोताओं को भाषण के माध्यम से पदार्थ-ज्ञान की गहराई में उतारते जा रहे हैं । मन और पदार्थ के विषय में मुनिश्री बता रहे हैं कि जिस प्रकार मन के छह भेद हैं, उसी प्रकार पदार्थ के भी छह भेद हैं, मन के भेद हैं- (१) काला (२) नीला (३) भूरा (४) पीत (५) पद्म (६) शुक्ल । पदार्थ के भेद हैं-(१) स्थूल-स्थूल (२) स्थूल (३) स्थूलसूक्ष्म (४) सूक्ष्म-स्थूल (५) सूक्ष्म (६) अति सूक्ष्म ।
श्रोताओं की जिस पंक्ति में मैं बैठा हुआ हूँ, उसी में सर्वश्री पं. भूदेव शर्मा, आजादजी, बरेली कॉलेज के डॉ. कुन्दनलाल जैन, वार्ष्णेय कालेज के डॉ. श्रीकृष्ण वार्ष्णेय तथा डॉ. महेन्द्र सागर प्रचण्डिया; अलीगढ़ विश्वविद्यालय के डॉ. राम सुरेश त्रिपाठी तथा डॉ. गिरिधारीलाल शास्त्री और मेरे प्रिय दो शिष्य डॉ. श्रीराम शर्मा एवं डॉ. गयाप्रसाद शर्मा भी बैठे हुए हैं। मेरी पंक्ति से आगे की पंक्ति में बड़ौत के संस्कृत-प्रोफेसर श्री जैन भी हैं, जिन्होंने प्रो. जयकिशनप्रसाद खण्डेलवाल के उपरान्त भूमिका रूप में संक्षिप्त प्रवचन किया है। हम सब मुनिश्री के प्रवचन की अन्तर्भूत सूक्ष्म व्याख्याओं को ध्यान से सुन रहे हैं और उनके विस्तृत एवं गम्भीर ज्ञान की मौन भाव से सराहना कर रहे हैं। हमें अनुभव हो रहा है कि मुनिश्री ज्ञान के सचल विश्वकोश हैं। परम पिता परमात्मा ने एक ही शरीर में तपश्चर्या, सच्चरित्रता और विद्वत्ता की त्रिवेणी प्रवाहित की है । ऐसे जंगम तीर्थराज के दर्शन करके कौन अपने को भाग्यशाली न समझेगा? उन पुनीत क्षणों में मेरे अंतस् का श्रद्धालु श्रोता अनुभव करने लगा कि ऐसे ही सन्तों के लिए महाकवि तुलसी ने 'मानस' में लिखा है-" "मुद मंगलमय संत समाज । जो जग जंगम तीरथराज ॥"
- -राम चरित मानस, बाल. 27 ऐसे ही महान् सन्त गुरु के चरणों में बैठकर बालक तुलसी ने राम का पावन चरित्र सुना होगा और दिव्य दृष्टि प्राप्त की होगी। तभी तो गुरुपद-वंदन करते हुए वे कहते हैं
"श्री गुर पदनख मनिगन जोती। सुमर दिव्य दृष्टि हियँ होती॥
२३ जून १९७३
आज प्रातः ६ बजे ही पूरा पंडाल सहस्रों जैन-अजैन स्त्री-पुरुषों से खचाखच भरा हुआ दृष्टिगोचर हो रहा है । कारण स्पष्ट ही है कि 'पुरुषोत्तम भगवान् राम' के जीवन पर मुनिश्री महाराज का भाषण होगा, जिसका आधार संस्कृत,
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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