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देश में खुशहाली तभी होगी जब हम देश से प्यार करेंगे। वाद या समानता के आदर्श की प्राति किसी विधेयक को पारित करने से सम्भव नहीं, इसकी प्राप्ति के लिए यद्वातद्वा देशवासियों का हृदयपरिवर्तन करना होगा और हृदय-परिवर्तन भी इन्हीं सन्तों, मुनियों के दिव्योपदेश द्वारा सम्भव हो सकेगा। च कि देश में स्वार्थपरायण व्यक्ति अधिक हैं और वे राष्ट्र का अंग-अंग विकृत, विकलांग बना रहे हैं। किसी की तोंद फूल रही है, तो किसी के पैर दूसरे का सिर कुचलने के लिए बेताब हैं, कहीं निःशक्त टाँगें उदर के गुरुभार को सहन नहीं कर पा रही हैं और लड़खड़ा रही हैं और विद्रोह के लिए तत्पर हैं, किसी का अर्धनग्न शरीर कड़ाके की सर्दी से विकम्पित हो रहा है, किसी का पेट भूख से पीठ में घुसा जा रहा है। ऐसी स्थिति में देश में एकता या समानता कहाँ से आ सकती है ? जब तक वर्ग-संघर्ष है और पारस्परिक सौहार्द का अभाव है, एकता की कमी है तब तक समाजवाद आकाश-कुसुम के अतिरिक्त और कुछ नहीं ।
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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