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विद्यानन्द-साहित्य : एक सर्वेक्षण
विरचित
१. अनेकान्त-सप्तभंगी-स्यावाद (इस पुस्तक में जैन-दर्शन की प्राचीनता के साथ सत्य को जानने की पद्धति के रूप में अनेकान्त-स्याद्वाद का विश्लेषणात्मक एवं तुलनात्मक सप्रमाण विशद विवेचन किया है), मेरठ, १९६९ ।
२. अपरिग्रह से भ्रष्टाचार-उन्मूलन (इस पुस्तिका में मार्गदर्शन दिया है कि किस प्रकार अपरिग्रह को अपनाने से भ्रष्टाचार को जड़-मूल से मिटाया जा सकता है), आगरा, नवीन संस्करण १९७२ ।
३. अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग (यह पुस्तक एक गहन अध्ययन की सामग्री प्रस्तुत करती है। सोलहकारण के अन्तर्गत चौथी भावना अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग' है, मुनिश्री ने कई रोचक संदर्भ देकर विषय को सरल और उपयोगी बना दिया है । यह उत्कृष्ट दार्शनिक कृति है), इन्दौर, १९७१ ।
४. अहिंसा : विश्वधर्म (यह एक ऐसी कृति है, जिसे जैन-जैनेतर ज्ञान-पिपासुओं ने तो पढ़ा ही, किन्तु जिसने विदेशों का ध्यान भी आकर्षित किया है), इन्दौर, १९७३ ।
५. आदिकृषि-शिक्षक तीर्थंकर आदिनाथ (इस पुस्तिका में ‘आदि पुराण' के महत्त्वपूर्ण तथ्यों को उद्घाटित करते हुए समझाया है कि भगवान् आदिनाथ द्वारा उपदिष्ट कृषि मार्ग को अपनाना राष्ट्र के लिए अत्यन्त उपादेय और हितकर है), आगरा, नवीन संस्करण १९७२ ।
६. आध्यात्मिक सूक्तियाँ (मुनिश्री ने आत्म-कल्याण के मार्ग पर चलने वाले आत्मशोधार्थियों के लिए एक प्रेरक आध्यात्मिक चयनिका के रूप में इस पुस्तिका को तैयार किया है। चुने हुए बोधप्रद सूक्तों का यह ऐसा अप्रतिम संकलन है, जिसमें श्लोकों को अर्थसहित प्रस्तुत किया गया है), इन्दौर, १९७३ ।
७. ईश्वर कहाँ है ? (इस पुस्तिका में ईश्वर के स्वरूप की व्याख्या के साथ स्पष्ट किया है कि चरित्र ही ईश्वरीय रूप है), आगरा, नवीन संस्करण १९७२ ।
८. कल्याण मुनि और सम्राट सिकन्दर (इस पुस्तिका में तीर्थंकर आदिनाथ और महावीर के सम्बन्ध में ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत करने के साथ ही सिकन्दर के भारत पर
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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