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१६. मन्त्र, मूति और स्वाध्याय (इस पुस्तिका में णमोकार मन्त्र माहात्म्य, मूर्तिपूजा के रहस्य और स्वाध्याय के जीवन में महत्त्व को प्रतिपादित किया है), जयपुर, १९६४ ।।
१७. महात्मा ईसा (इस पुस्तिका में ईसा मसीह के भारत-आगमन, उन पर श्रमणसंस्कृति का प्रभाव-जैसे तथ्यों के बारे में सप्रमाण लिखा है कि इतिहासविद् तथा शोधकर्ता इस बात पर प्रायः एकमत हैं कि महात्मा ईसा का सुप्रसिद्ध गिरिप्रवचन तथा पीटर, एण्ड , जेम्स आदि शिष्यों को दिये गये उपदेश जैन-सिद्धान्तों के अत्यन्त समीप हैं)
१८. विश्वधर्म की रूपरेखा (इस पुस्तक में भगवान ऋषभनाथ से महावीर तक की तीर्थंकर परम्परा की प्रामाणिकता प्रस्तुत करते हुए जैनधर्म की प्राचीनता का विवेचन किया है और प्रतिपादित किया है कि विश्व का सर्वसम्मत, विश्व-हितकारी धर्म 'अहिंसा' है। 'विश्वधर्म' की रूपरेखा अहिंसामयी है), दिल्ली, द्वितीय संस्करण १९६६ ।
१९. विश्वधर्म के दशलक्षण (यह एक महत्त्वपूर्ण कृति है, जिसमें विश्वधर्म की एक सुसंगत रूपरेखा प्रस्तुत हुई है), इन्दौर १९७१ ।
२० विश्वधर्म के मंगल पाठ (इस पुस्तक में परम्परात सामग्री को नये ढंग से शुद्ध तथा मौलिक रूप में प्रस्तुत किया गया है), इन्दौर, १९७१।
२१. वीर प्रभु (इस पुस्तिका में भगवान महावीर का संक्षिप्त किन्तु सारपूर्ण परिचय है, साथ ही उनके दिव्य उपदेशों को सरल-सरस लोकभाषा में प्रस्तुत किया है), आगरा, छठा संस्करण १९६६ ।
२२. सप्त व्यसन (इस पुस्तक में वसुनन्दी श्रावकाचार के संदर्भ में 'सप्त व्यसन'जैसे परम्परित विषय को बड़े रोचक रूप में प्रस्तुत किया गया है), इन्दौर १९७१ ।
२३. समय का मूल्य (यह पुस्तक एक उत्कृष्ट कृति है। इसमें समय की महत्ता पर कई रोचक तथ्य हैं, इसकी शैली मन को मथ डालने वाली है), इन्दौर १९७१ ।
२४. सर्वोदय तीर्थ (इस पुस्तिका में स्पष्ट किया है कि सर्वोदय तीर्थ की परिकल्पना किस प्रकार विश्व मानवों के संपूर्ण हितों की रक्षा करने में सक्षम है), आगरा, नवीन संस्करण १९७२ ।
२५. सुपुत्रःकुलदीपकः (इस पुस्तिका में आज के यन्त्र-युग में कुल-दीपक विश्वदीपक कैसे बन सकते हैं, इस संदर्भ में युवा-पीढ़ी को बड़ा ही प्रेरक उद्बोधन दिया है), आगरा, नवीन संस्करण १९७२ ।
२६. स्वतंत्रता और समाजवाद (मुनिश्री ने तत्त्वार्थसूत्र के कई सूत्रों को एक नये ही संदर्भ में प्रस्तुत किया है । पुस्तक युगान्तकरकारी है और जैन-तथ्यों के संदर्भ में पहली बार समाजवाद की व्याख्या करने में समर्थ है), इन्दौर १९७१ ।
२७. श्रमण संस्कृति और दीपावली (इस पुस्तक में श्रमण संस्कृति और उसकी उपलब्धियों का विवेचन करते हुए राष्ट्रीय पर्व दीपावली की महत्ता स्पष्ट की गयी है साथ ही उसके आयोजन को दिशा भी दी है ), इन्दौर १९७२।
मुनिश्री विद्यानन्द-विशेषांक
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