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गतलवबालवायला
तीर्थंकर शान्तिनाथ की शेडवाल-स्थित वह मनोज्ञ प्रतिमा जिसके सम्मुख सन् 1945 के पर्युषण-पर्व की अनन्त चतुर्दशी को युवा सुरेन्द्र उपाध्ये ने आजीवन ब्रह्मचर्य का संकल्प किया। संकल्प था : 'प्रभो, आप ही मुझे इस विषम ज्वर से बचायेंगे। यदि मैं बच गया तो आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत धारण करूंगा, महात्मा गांधी-जैसा मेरा वेश होगा, धर्म-सेवा और राष्ट्र-सेवा मेरा अविचल व्रत होगा।' भगवान् शान्तिनाथ की कृपा-छाया में सुरेन्द्र स्वस्थ हुए और तब से उन्होंने आत्मकल्याण और मानव-हित में स्वयं को समर्पित कर दिया।
तीर्थंकर | अप्रैल १९७४
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