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[१२] ४-हरिद्वाभिजाति-सर्व वन त्यागी-माजीवक गृहस्थ(एलक बगैरह गृहस्थ) .. ५-शुक्लाभिजाति-श्राजीवक श्रमण, श्रमणी
६-परम शुक्लाभिजाति-प्राजीवक धर्माचार्य नंदवत्स किस सकिया और मक्खली गौशाला वगैरह। . . इन अभिजातियों का परमार्थ यह है कि अधिक वस्त्र वाले मनुष्य प्रथम पायरी पर खड़ा है अल्प बस्न वाला बीच में खड़ा है और बिलकुल नग्न छठी पायरी पर जा पहुचा है।
इस हिसाब से यौद्ध श्रमण दूसरी कक्षा में जैन निर्ग्रन्थ तीसरी और आजीवक श्रमण पाँचवीं कक्षा में उपस्थित है । साफ बात है कि उस काल में निर्ग्रन्थ श्रमण वस्त्रधारी थे और श्राजीवक श्रमण नंगे रहते थे।
(एन साई क्लो पीडिया ऑफ रीलिजियन एण्ड एथिक्स वॉ० । पृ० २५९ का भाजीवक लेख)
३-लोहित्या भिजाति नामनिग्गं था-एक साटिक"ति वदन्ति। लोहिता भि जाति माने वस्त्रवाले जैन निर्गन्थ ।
. .. दि० बांबू कामता प्रसादजी कृत "महावीर और बौद्ध) यह पाठ भी ऊपर के पाठ का ही उद्धृत अंश है । इसमें जैन साधुओं को संवत्र माना है। - ४--पाणीनीय व्याकरण में "कुमारश्रमणादिभिः सूत्र से गणधर श्री कशिकुमार का उल्लेख है ये प्राचार्यभी वस्त्र धारी थे इन्होंने गणधर श्री गौतम स्वामी से प्राचार पर्यालोचना की थी।
(उतराध्ययन सूत्र म०) ५-कलिंगाधिपति सम्राटू खारवेल ने जैन मुनियों को वस्त्र दान किया था ऐसा उसके उत्कीर्ण शिला लेख में लिखा गया है।
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