________________ %AAAAAAAA KI दुःख है अर्थात् सर्वत्र मेरा ही उपकार है; राजा मानके तानकी शानका भान न रखकर इस है प्रकार गर्व गर्वित वचन बोलने लगा-इस भूतल पर मैं ही कर्ता हूँ, कर्म नहीं! सुख दुःखका है। दाता मैं ही हूं, लोकेश्वर और लोकपाल भी मैं ही हूँ, लोकके अन्दर जितने कार्य हैं वे सब मेरे अधीन हैं, मैं चाहुं उस राजाको रंक और रंकको राजा बना सकता हूँ-हे पुत्री! तुं दुर्भाग्या पठितमूर्खा है अतः अपना हठवाद नहीं छोड़ती मगर याद रखना तेरे लिये रोगग्रस्त || दरिद्री वर करके असीम दुःखमें गेरूंगा तबही मेरे दिलमें सन्तोष होगा-कन्ये! अबतक भी कुछ नहीं बिगड़ा है, समझले और अपने मुखसे इच्छानुसार वर मांगले; इत्यादि राजाने बहुत कुछ कहा. * मदनसुन्दरी बोली हे तात! मैं ही कर्ता हूँ मैं ही परमेश्वर हूँ, इत्यादि अभिमान ग.. र्भित वचन बोलना आपको मुनासिब नहीं है, गर्वसे नानाविध हानियें होती है. इसहीसे बड़े 2 , COIESSAR Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradh