________________ A%A4A4%AASHRA ___शायंकाल होते ही अपने पुत्र-रत्नको लेकर रानी एकाकी नगरसे बाहार निकल गई और * किसी एक निर्जन वनमें प्रवेश किया, इस वख्त गद्गद् कण्ठ होकर कहने लगी-दे सम्बधिनी! राजपद धारक लीलायुक्त बालपुत्र सहित भयानक अरण्यमें वह रानी व्रमण करने लगी, नवनीत (मख्खन ) सदृश सुकोमल शरीरवाली, चन्द्रवदना, पति वियोगिनी, राजसमृद्धिविहीना है। नृपतिभार्याने उस कष्टतरा अटवी में कैसे 2 घोर दुःख सहन किये कि जिसका स्वरूप उसकी है। आत्मा या ज्ञानी महाराज ही जान सकते हैं, जो 2 अशुभ कर्म पूर्वमें संचय किये थे मानो वे 5 सब एक ही साथ सहसा उदय आ गये; इतना कष्ट गुज़रनेपर भी उस रानीने धैर्य धारण कर | 6 जैसे तैसे रात्रीभरमें उस भयङ्कर वन-खण्डको उलंघन किया और प्रभात समय एक रास्ते 5 पर चड़ी. थोड़ी ही दूर जाने पर एक कुष्टिसमूह उसे मिला, उसको देख कर रानी चमकी और il Ac Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak