________________ श्रीपाल प्रस्ताव चौथा. हे वास्ते स्वयंवर-मण्डप रचा गया है; उस मण्डपकी शोभा इस प्रकारकी है:-रत्न जड़ित सुवर्ण * स्तम्भोंसे विराजमान, बड़ी 2 पताकाओंकी पंक्तियोंसे शोभायमान, चार मोटे दरवाजोंसे विभू-|| // 6 // |षित, चित्र-विचित्र पुतलियोंसे सुमनोहर, ऊचे 2 तोरणोंसे शृंगारित, अष्टमंगलोसे युक्त, ना- |PI P नाविध आसनोसे दूषित; इत्यादि सुन्दरतासे वह मंडप स्वर्गविमानके सदृश आदर्श बना हुवा है है-अनेक देशके राजा लोग वहां पर इकत्रित हुवे हैं, अन्न-जल-घास वगेरा मोटे प्रमाणमें 5 | संग्रह किया गया है; आषाढ कृष्णा बीजको वह कन्या वर वरेगी, वही बीज आते कल है; 8 और नगर यहांसे तीनसो जोजन दूर है; यह सुन श्रीपालजी उस मुसाफिरको वर्णानूषण देकर | | अपने स्थान पर आये. ... कुमार पिछली रातको हारके प्रभावसे कुबड़ेका रूप करके कंचनपुरके राज-मण्डपमें प्राप्त हुवे, जबकि स्वयम्बर-मण्डपमें प्रवेश होने लगे कि पहरेदारने उन्हें रोका, तुरन्तही हाथोंमेंसे सोनेके कड़े निकाल कर उसे दिये और सानन्द अन्दर चले गये, वहां पर एक स्तम्भ पर ESSAABLICACERI ASHAOS OGGA SHIRISHIGIJGHIHIRAXIS c.GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak