Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 177
________________ SHISHASHX-LOUISHIGASHICHICH | बड़े आदरके साथ राजर्षि अजितसेन महाराजको नम्र प्रार्थना की-हे महामुने! दीक्षा ग्रहण का * करने में तो मेरी सामर्थ्य नहीं है, कृपाकर मेरे योग्य धर्म कार्य बताईये? जिससे मेरा जन्म 5 सफल हो और अन्तमें मोक्ष प्राप्त हो, तब कृपालु मुनिवरने फरमाया-तेरे जोगावली कर्मके | कारण दीक्षा तो उदय नहीं आसकती, मगर नवपद महाराजके ध्यानमें लयलीन होकर यहांसे / नवमें देवलोकमें तूं उत्पन्न होगा फिर आगे मनुष्य और देवताओंके सुखोंका अनुजव करके नवमें / जवमें तेरा मोक्ष हो जाय गा, बड़े हर्षित होते हुवे राजा मुनिराजको वंदन-नमस्कार कर अ. | पने स्थानपर वापिस चले गये, मुनिमहाराज जी अन्यत्र विहार कर गये-श्रीपाल महाराज || है अपनी मातेश्वरी तथा समस्त रानियोंके साथ श्रीसिद्धचक्र महाराजकी पूजामें तथा ध्यानमें है। तलालीन पने रहते हुवे आनन्दपूर्वक निवास करते हैं... Cli-A.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhaki

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