________________ GAAAAAAAAAAA प्रकारी पूजा कर आति उतारी, शुभ समयमें सर्व संघने महाराजा व महारानीको मंगल तिलक किया तथा मंगल माल पहनाई; नाना वार्जित्रों पूर्वक भूपेंद्रने अपनी पहरानी सहित || द्रव्य पूजा की; पश्चात् नाव पूजा (प्रजु स्तुति ) इस प्रकार करने लगेः (गाथा) जो धुरि सिरी अतिहंत मूल दिड पीउ पइडिओ / सिद्ध-परि-उवमाय-साहु साहा गरिडिओ दसण-नाण-चरण-तव पड़िसाहा हि सुंदरुं / तत्तखर सुरवग्ग लद्धि गुरुपय दल दुषरं // दिसी पाल-जरक-जरकणी पमुहसुरकुसुमे हिं अलंकिओसोसिद्धचक गुरु कप्पतरु अम्ह हिमण वंछिओ दिओ॥१॥ (षट् पदात्मक गाया) जावार्थ:-जिसके आदिमें मूल दृढ पीठपर अरिहन्त देव प्रतिष्ठित हैं और जो सिक-आ-al || चार्य-उपाध्याय-साधु पद रूपी रम्य शाखाओंसे शोभित है तथा दर्शन-ज्ञान-चारित्र-तप पद | रूपी प्रतिशाखाओंसे भूषित है एवं तत्वाक्षर. (ॐ-ही इत्यादि) सोलह स्वर, बत्तीस व्यंजन, OCTEGCOEACCA SIK IAC.Gunratnasun M.S. Jun Gun Aaradhak