Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Anandsagar
Publisher: Ganeshmal Dadha

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Page 186
________________ दिसीपइ सुर सारं-खोणि पीठावयारं / तिजय विजयचकं सिद्धचकं नमामि // 6 // भावार्थ:-इस प्रकार नव पदोंसे निष्पन्न, लब्धियों और विद्याओंसे सम्पूर्ण, स्वर-वर्गादि AAAAA% E5C देवोंके समूहसे प्रधान भूमंडल पर अवतरित ऐसे तीन जगत्के विजय करनेमें चक्र समान विजय | चक्ररूप श्रीसिद्धचक्रको में अनेकशः नमस्कार करता हूँ. छ इस तरह श्रीसिझचक्रकी स्तवना करके वहांसे रवाना हुवे, पश्चात् गुरु महाराजके पास || आकर वंदन-नमस्कार-सत्कार-सन्मानादि किया और यथा अवसर वस्त्र-पात्र वगेरा प्रदान | कर उनकी भक्ति की; इस तौरपर संघ समस्त के साथ मंगल वाजिंत्रोंसे शुभ भावना द्वारा | जिन शासनकी महती प्रजावना की, संघनक्ति-स्वामीवात्सल्यादि धर्म कृत्य करने लगे-माते- | // 90 // श्वरी और सर्व पट्टरानियोंके साथ तथा अनेक अन्योंके साथ श्रीसिद्धचक्रमहाराजकी अनन्य जावोंसे श्रीपाल नृपेन्द्र आराधना करते हुवे आनन्द पूर्वक निवास करते हैं. #CHURCIA SAINK Jun Gun Aaradhak Te!

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